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________________ ४९६ षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, परीशिष्ट-२, योगदर्शन हैं। मरण के आंतकरुप अभिनिवेश का हेतु मरण के दुःख के अनुभव से पडा हुआ संस्कार हैं। यह संस्कार पूर्व जन्म का ही हैं। उत्तमाधिकारी जीवो में क्लेश तनुता को प्राप्त हुए हैं, परंतु जो मध्यमाधिकारी जीव हैं उसमें क्लेश तनुता को प्राप्त नहीं हुए हैं। इसलिए उनको क्रियायोग बताये हैं। क्रियायोग से तनुता को पाते हैं । परन्तु इतने मात्र से उनका दाह या नाश होता नहीं हैं । इसलिए वह करने के क्या उपाय हैं ? उसके लिए दो सूत्र रचते हैं। क्लेश का नाश करना हैं वह दो प्रकार के हैं। (१) स्थूल, (२) सूक्ष्म । सूक्ष्म का नाश किस तरह से हो उसे प्रतिपादन करते हैं। ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः ॥२-१०॥ ( योगसूत्र) सूत्रार्थ :- उसमें जो सूक्ष्म क्लेश हैं वे चित्त के प्रलय से नष्ट होते हैं। ते सूक्ष्मा :- जो क्लेशो का कार्यतः नाश हुआ हैं । अर्थात् जिनका स्व-स्व कार्य को उत्पन्न करने का सामर्थ्य दग्ध हुआ हैं और इसलिए जो दग्धबीजभावावस्था में चित्त में रहे हुए हैं। प्रतिप्रसव-प्रसव उत्पत्ति, उसका विरोधी वह प्रतिप्रसव अथवा नाश । तत्त्वज्ञान उत्पन्न होने से क्लेशो के कार्यो का नाश होता हैं । तथा क्लेशो का इस कार्य को उत्पन्न करने का सामर्थ्य दग्ध होता हैं । इस प्रकार दग्ध हुए क्लेश चित्त में पड़े रहते हैं। ये क्लेश सूक्ष्म कहे जाते हैं। इन क्लेशो का अत्यंत नाश चित्तरुप उसके आश्रय का नाश होने से होता हैं। इसलिए चित्त का नाश करना वही उस क्लेशो को नाश करने के उपाय हैं । चित्त का नाश जब चित्त का अधिकार समाप्त हो तब अर्थात् चित्त चरितार्थ होता हैं तब होता हैं । जहाँ तक चित्त में प्रारब्ध संस्कार रहे हुए होते हैं। तब तक चित्त साधिकार हैं। इसलिए तत्त्वज्ञान होने के बाद उन प्रारब्ध संस्कारो का नाश होता हैं। तब चित्त चरितार्थ हो सकता हैं । प्रारब्ध संस्कार दो तरह से नाश होते हैं । (१) भुगतकर, (२) असंप्रज्ञातयोग के दृढ अनुष्ठान से । इसलिए सूक्ष्म क्लेश का नाश करने के दो उपाय हुए। (१) असंप्रज्ञातयोग और (२) तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के बाद प्रारब्ध संस्कारो का भोग अर्थात् प्रयत्न का अभाव । इसलिए सूत्र से यह प्रतिपादन किया हैं कि, विदेहकैवल्य की तत्काल प्राप्ति के लिए चित्त का नाश अवश्यकर्तव्य हैं । चित्त के नाश से सूक्ष्म क्लेशो का नाश होता हैं । और उसके लिए असंप्रज्ञातयोग का दृढ अनुष्ठान करना, यही उपाय हैं । अब स्थूल क्लेशो के नाश का उपाय बताते हैं। ध्यानहेयास्तवृत्तयः ॥२-११॥ (योगसूत्र ) सूत्रार्थ :- अदग्धबीजभावा अवस्था में रहे हुए अर्थात् तनुता को पाये हुए उन क्लेशो की वृत्तियाँ समाधिप्रज्ञा से नाश होती हैं । इस स्थान पे ध्यान शब्द से ध्यान के कार्यरुप समाधिप्रज्ञा लेना आवश्यक हैं । क्योंकि अविद्या मिथ्याज्ञानरुप होने से उसका नाश उसके विरोधी तत्त्वज्ञान से हो सकता हैं । तत्त्वज्ञान, विवेकख्याति तथा समाधिप्रज्ञा इस स्थान पर पर्यायरुप हैं । तत्त्वज्ञानरुप समाधिप्रज्ञा साक्षात् अविद्या की विरोधी हैं। ध्यान अपरिपक्व एकाग्रतारुप होने से क्लेशो का साक्षात् विरोधी नहीं हैं। इस प्रकार स्थूल क्लेश समाधिरुप प्रज्ञारुप तत्त्वज्ञान से नष्ट होते हैं। उन क्लेशो की अभिव्यक्ति नाश होती हैं। उसकी योग्यता भी नाश होती हैं । वह चित्त में पड़ी रहती हैं। पूर्व के सूत्र से उस चित्त में रहे हुए क्लेशो का भी नाश होता हैं । क्लेशो की तीन अवस्था, (१) तनुता, (२) दग्धबीजभावा, (३) नाश । तनुता का उपाय क्रियायोग कहा । दग्धबीजभावा की प्राप्ति का उपाय समाधिप्रज्ञा कही । और नाश का उपाय प्रतिप्रसव कहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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