SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३२ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-१, वेदांतदर्शन होती हैं। इसलिए सुषुप्ति में भी वह होगी ही ।(३४३) यहाँ प्रश्न उठता हैं कि, समाधिकाल में मूलाज्ञानाकार अविद्यावृत्ति होती हैं या नहीं ? समाधिकाल तो प्रलयकाल भी नही हैं या तत्त्वज्ञानकाल भी नहीं हैं। इसके उत्तर में कहना चाहिए कि, समाधि में से उठी हुए (व्युत्थित) व्यक्ति को "मैं मूढ था" ऐसा स्मरण नहीं होता हैं । इसलिए समाधिकाल में मूलाज्ञान होने पर भी मूलाज्ञानाकार वृत्ति नही होती हैं। समाधिवृत्ति ही मूलाज्ञानाकार अविद्यावृत्ति की विरोधी हैं। जो हो वह, शुद्धचिन्मात्रविषयक अज्ञान ही मूलाज्ञान हैं और अनेकविषयविशेषित अज्ञान ही अवस्थाअज्ञान हैं । मूलाज्ञान और अवस्थाअज्ञान का यही भेद हैं । उभय अज्ञान अनादि हैं, ज्ञाननिवर्त्य हैं और असदविलक्षण हैं। हमने अवस्थाअज्ञान को अनादि कहा हैं। परंतु उसके अनादित्व के विषय में आचार्यों में मतभेद हैं। विवरण की टीका ऋजुविवरण में श्रीविष्णुभट्टोपाध्याय ने कहा हैं कि कुछ आचार्य मूलाज्ञान की तरह अवस्थाअज्ञान को भी अनादि मानते हैं परंतु उनका मत संगत नहीं हैं । (३४४) अवस्थाअज्ञान अनादि नहीं परन्तु सादि हैं। अज्ञान का सादित्व दूसरे किसी ने स्वीकार किया हो, ऐसा लगता नहीं हैं । यह श्रीविष्णुभट्ट प्रसिद्ध सर्वदर्शनकारके गुरु थे, ऐसा ख्याल हैं। अवस्थाअज्ञान संबंध में विशेष आलोचना अद्वैतसिद्धि के प्रतिकर्मव्यवस्थाप्रकरण में श्रीमधुसूदन सरस्वतीने और श्री गौडब्रह्मानन्द ने की हैं । (३४५) श्री गौड ब्रह्मानन्द ने कहा हैं कि, आवरण और विक्षेप दो शक्ति से युक्त, ब्रह्मज्ञान से अतिरिक्त ज्ञान से नाश्य, मूलाज्ञान के साथ तादात्म्यानापन्न अर्थात् मूलाज्ञान के साथ तादात्म्य न पाये हुए अज्ञान को तुलाज्ञान कहा जाता हैं; और आवरणविक्षेपशक्तियुक्त, ब्रह्मज्ञानान्यज्ञाननाश्य, मूलाज्ञान तादात्म्यापन्न अज्ञान को अवस्थाअज्ञान कहा जाता हैं । अवस्थाअज्ञान मूलाज्ञान की अवस्थाविशेष हैं। मूलाज्ञान की अवस्थाविशेष होने के कारण अवस्थाअज्ञान मूलाज्ञान के साथ तादात्म्य रखता हैं । तुलाज्ञान मूलाज्ञान के साथ तादात्म्य रखता नहीं हैं। अवस्थाअज्ञान और तुलाज्ञान के बीच यही भेद हैं । मूलाज्ञान के साथ तादात्म्यापन्न अवस्थाअज्ञान को किसी भी तरह से सादि नहीं कहा जाता ।(३४६) ___ सुषुप्तिकाल में अविद्याविषयक अविद्यावृत्ति होती हैं, इसलिए ही सुप्तोत्थित पुरुष को अज्ञान का स्मरण होता हैं। यहाँ प्रश्न यह होता हैं कि, सुषुप्तिदशा में अज्ञान का जो प्रत्यक्ष होता हैं उस प्रत्यक्ष का विषय अज्ञान साक्षी का विशेषण बनकर प्रत्यक्ष होता हैं या स्वतंत्र रुप से प्रत्यक्ष होता हैं ? अज्ञानविशिष्ट साक्षिविषयक अविद्यावृत्ति होती हैं या केवल अज्ञानविषयक अविद्यावृत्ति होती हैं ? अज्ञान चैतन्य में आश्रित वस्तु हैं, यह आश्रित अज्ञान का प्रत्यक्ष आश्रितत्वरुप में होता हैं या वैसा न होने से अज्ञानस्वरुपमात्र का प्रत्यक्ष होता हैं ? उसी ही तरह से सुषुप्ति में सुख का जो प्रत्यक्ष होता हैं वह क्या सुखाभिन्न साक्षी का प्रत्यक्ष हैं या सुखमात्र का प्रत्यक्ष हैं ? निष्कर्ष यह हैं कि, सुषुप्ति में विशिष्टविषयक वृत्ति होती हैं या नहीं? सुषुप्ति में विशेषणविशेष्यभाव में ज्ञान संभवित है या नहि ?(३४७) इसके उत्तर में कहना चाहिए कि, सुषुप्तिदशा में विशिष्टविषयक वृत्ति नहीं हो सकती। विशिष्टविषयक वृत्ति विशेष्य और विशेषण के संसर्गविषयक वृत्ति हैं। सुषुप्तिदशा में निर्विकल्पक ज्ञान ही होता हैं । निर्विकल्पक ज्ञान __ (३४३) एतावत्कालं मूढोऽहमासमिति नानाविषयाविशेषितरूपेणाप्यज्ञानस्य जागराहाकाले तत्त्वज्ञानकाले च स्मरणात् । न्यायरत्नावली, पृ.४१८ (३४४) केचित् अज्ञानवदवस्थानामनादित्वमाह, तदसत् । ऋजुविवरण, कलकत्ता संस्कृत सिरिझ, पृ.११० (३४५) अद्वैतसिद्धि, पृ. ४८६-४८७ (३४६) तुलाज्ञानमावरणविक्षेपशक्तियुक्तं ब्रह्मज्ञानान्यज्ञाननाश्यं मूलाज्ञानतादात्म्यानापन्नमज्ञानम् । अवस्थाविशेषस्तु तादृशं मूलाज्ञानतादात्म्यापन्नम् । लघुचन्द्रिका, पृ.४८७ (३४७) ननु अज्ञानविशिष्टसाक्षिविषयिका सुखाभिन्नसाक्षिविपयिका च वृत्तिः कुतो नोक्ता? न्यायरत्नावली, पृ. ४१८, सिद्धान्तबिन्दु, पृ. ६२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy