SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग -१, परिशिष्ट-१, वेदांतदर्शन ४२३ अब यहाँ पर सिद्धान्तबिन्दु में जो सुषुप्ति के स्वरुप के विषय में विस्तृत समीक्षा की हैं, उसको बताई जाती हैं। उससे वेदांत के अनेकविध विषयो का स्वरुप स्पष्ट हो जायेगा। सुषुप्ति के विषय में समीक्षा: बद्ध अर्थात् संसारी जीव जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति ये तीन अवस्थाओं में से किसी एक अवस्था में होता है। जाग्रत् काल में और स्वप्न काल में भोग्य वस्तु के भोग से बद्ध जीव थक जाता हैं। ये दो अवस्थाओं में से जीव के भोगसंपादक कर्मो का क्षय होने से सुषुप्तिकाल में जीव का अन्तःकरण अपने कारण अविद्या में सूक्ष्म रुप से रहता हैं । ज्ञान के नाम से पहचानी जाती वृत्ति का आधार अन्तःकरण अपने कारण अविद्या में लय पाते हुए बद्ध जीव विश्रामस्थानरुप सुषुप्ति अवस्था में चला जाता हैं । थके हुए जीव के लिए सुषुप्ति अवस्था विश्रामस्थान हैं ।(३१४) ज्ञानशक्ति का आधार अन्तःकरण हैं और क्रियाशक्ति का आधार प्राण हैं । ३९५) ये दोनों बद्ध जीव की उपाधि हैं। सुषुप्ति अवस्था में क्रियाशक्ति का आधार ऐसी प्राणरुप उपाधि का लय होता नहीं हैं जब ज्ञानशक्ति का आधार ऐसा अन्तःकरण अपने कारण अविद्या में लय पा लेता हैं । सुषुप्तिदशा में केवल अन्तःकरण का ही लय होता हैं, ऐसा नहीं हैं। स्थूलशरीर का भी लय हो जाता हैं इसका वर्णन उपनिषद् में हैं। इसी तरह से प्राण का लय भी उपनिषद् में कहा गया हैं। स्थूल दृष्टि से हम सुप्त पुरुष के स्थूलशरीर का और उस शरीरगत प्राणक्रिया का अनुभव करते होने से हमको मन में होता हैं कि, सुप्त पुरुष के स्थूल शरीर का और प्राण का लय होता नहीं हैं। परंतु वस्तुतः सुप्त पुरुष की दृष्टि से तो स्थूलशरीर इत्यादि का भी लय हो जाता हैं। अन्य पुरुष अपने अज्ञानवश ही सुप्तपुरुष के शरीर इत्यादि को देखता हैं । वस्तुतः सुप्त पुरुष के शरीर इत्यादि अपने कारण अविद्या में लय पा जाते हैं। ऐसी बात उपनिषद् में कही गई हैं। फिर भी स्थूलदर्शी जनो के अनुभव का अनुसरण करके श्रीमधुसूदन सरस्वती सुप्तपुरुष के अन्तःकरण का ही लय होता हैं, ऐसा कहते हैं। जो हो वह, सुप्तपुरुष को स्थूल और सूक्ष्म शरीर का ज्ञान न होने से स्थूल और सूक्ष्म शरीर की अनुपलब्धि होती हैं और केवल कारणशरीर अविद्यामात्र की उपलब्धि उसकी सुषुप्तिकाल में होती हैं । स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन त्रिविध शरीरो में से केवल कारण शरीर की उपलब्धि सुषुप्तिकाल में होती हैं । ३१६) जाग्रत्काल में तीनो शरीर की उपलब्धि होती हैं। स्वप्नदशा में स्थूल शरीर की उपलब्धि होती नहीं हैं। जाग्रद्भोगजनक कर्म का क्षय होने से और स्वप्नभोगप्रद कर्म का उदय होने से निद्रा नाम की तामसी वृत्ति उत्पन्न होती हैं और उस तामसी वृत्ति द्वारा स्थूलदेह का अभिमान दूर होता हैं, उस वक्त चक्षु इत्यादि सभी इन्द्रियाँ, जो इन्द्रियाँ जाग्रत् काल में उसके अनुग्राहक देवताओ के द्वारा अनुग्रह पाकर सव्यापार थी वह, अपने अपने देवता के अनुग्रह के अभाव के कारण निर्व्यापार होकर लय पाती हैं। वह स्वप्नकाल में इन्द्रियव्यापार न होने से अन्तःकरणगत वासना के वश से इन्द्रियव्यापार का अभाव होने पर भी विषय की उपलब्धि होती हैं । इन्द्रियव्यापाराभावकालीन अन्त:करणवासनानिमित्तक अर्थोपलब्धि ही स्वप्न हैं। इस समय में मन ही स्वप्नगज, स्वप्न तुरग इत्यादि रुप से परिणत होता है और अविद्यावृत्ति द्वारा स्वप्नगज, स्वप्नतुरग आदि ज्ञात होते है - ऐसी बात कोई कोई आचार्य स्वीकारते है। परन्तु कोई कोई आचार्य कहते है कि, (३१४) जाग्रत्स्वप्नभोगद्वयेन श्रान्तस्य जीवस्य तदुभयकारणकर्मक्षये ज्ञानशक्त्यवच्छिन्नस्य सवासनास्यान्तःकरणस्य कारणात्मनावस्थाने सति विश्रामस्थानं सुषुप्त्यवस्था । सिद्धान्तबिन्दु, राजेन्द्रनाथ घोष सं., पृ. ४१६-४१७ (३१५) तस्य च ज्ञानशक्तिप्रधानांशोऽन्तःकरणम् ।... क्रियाशक्तिप्रधानांशः प्राणः । सिद्धान्तबिन्दु, पृ. ३७९ (३१६) न किञ्चिदवेदिषमिति कारणमात्रोपलम्भः सुषुप्तिः । सिद्धान्तबिन्दु, पृ. ४१७ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy