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षड्दर्शन समुच्चय भाग -१, परिशिष्ट-१, वेदांतदर्शन
भास ही आभास हैं। (२३२) गौडपादकारिका के भाष्य में श्रीशंकराचार्य लिखते हैं कि, आभास से किसी कल्पित वस्तु का आभास होता हैं। जैसे कि, अनाभास में कोई कल्पित विषय का आभास नहीं होता हैं। श्रीगौडपादाचार्य ने जगत की प्रतीति को (२३३ आभास का प्रयोजन बताया हैं, जिससे अजातवस्तु जात (उत्पन्न) दिखाई देती हैं। अक्रिय सक्रिय लगता हैं और अवस्तु वस्तुओं के समान प्रतिभासित होती रहती हैं। देवदत्त उत्पन्न हो रहा है, उसमें जात्याभास अर्थात् उत्पत्ति का आभास होता हैं । देवदत्त चलता हैं, उसमें चलाभास और देवदत्त गौर और लम्बा हैं, उसमें वस्तु का आभास (वस्त्वाभास) प्रतीत होता हैं। श्री सुरेश्वराचार्य ने नैष्कर्म सिद्धि में ( २३४ आभास
का वर्णन करते हुए कहा हैं कि, ये जो क्रियाकारको से युक्त व्यक्त जगत् हैं फलात्मक आभास हैं, वह अंशमात्र में भी परमार्थ वस्तु का स्पर्श नहीं करता हैं । केवल उस उस वस्तुओ में जो यथार्थता दिखाई देती हैं, वह मोह के कारण दिखाई देती हैं। इस प्रकार का वर्णन (२३५)बृहदारण्यकोपनिषद्-भाष्यवार्तिक में अनेक स्थान पे देखने को मिलता हैं । उपदेश(२३६) साहस्री में आभास की उपमा दर्पण के साथ की हैं । जैसे दर्पण में मुख का आभास, मुख से भिन्न होता हैं, उसी प्रकार जीव का आभास भी आत्मा से पृथक् होता हैं। और यह आभास सर्वथा असत्य
और भम्र का बीज हैं। “चित्त" से अतिरिक्त सर्व प्रकार की नामरुपात्मक वस्तुयें "चित्त" का (२३७) आभासमात्र हैं। यह आभास (२३८)अविचारित भी सिद्ध होता हैं। अज्ञान का नाश होने पर आभास भी नष्ट(२३९) हो जाता हैं। यह
आभास कर्तृत्व-भोक्तृत्वरुप सर्व अनर्थो का २४०) मूल कारण हैं। आभास का कार्य-कारण रुप में वर्णन करना उचित नहीं हैं। इसलिए माया अथवा मिथ्या शब्द से(२४१) आभास का वर्णन किया जाता हैं। श्रीमधुसूदन सरस्वती ने आभास को(२४२) अनिर्वचनीय कहा हैं । श्रीविद्यारण्य स्वामी २४३) के मत में आभास मिथ्याभूत, मायिक और भ्रमकल्पित हैं। इस तरह से जीव और जगत की सत्ता को सत्य न मानते हुए सत्य का आभास ही मानना पडेगा। ___ (यहाँ उल्लेखनीय हैं कि, प्रस्तुत आभासवाद के समीक्षको का एक आक्षेप हैं कि, जगत को आभास मानने से उसकी व्यावहारिकापत्ति (अर्थात् व्यावहारिक सत्ता मानने की आपत्ति) आयेगी। यद्यपि, व्यावहारिक रुप से जगत् उपलब्ध हैं। परंतु अविद्या के कारण दृश्यमान प्रातिभासिक सत्ता हो या व्यावहारिक सत्ता हो, वस्तुतः दोनों एक समान ही हैं। प्रातिभासिक और व्यवहारिक सत्ता का भेद, उनके कारण कितने प्रभावशाली हैं, उसके उपर आधार रखता हैं। जैसे, एक तीर की प्रहारशक्ति, तीर किस प्रकार से छोडा जाता हैं, उसके उपर आधार रखता हैं, वैसे जो वस्तु अधिक प्रभावशाली होगी, उसका प्रभाव उतने ही काल तक स्थित रहेगा। परंतु वह प्रभाव क्षणिक हो या दीर्घकालिक हो, अंततः असत्य ही हैं। इसलिए जीवो की अभिव्यक्ति होती हैं, वह आभासात्मक होने के कारण
(२३२) आभासेन कल्पितविषयस्यावभासनं भवति यथा अनाभासं न केनचित् कल्पितेन विषयेणावभासते । (गौ. का. शां. भा. ३.४) (२३३) जात्याभासं चलाभासं वस्त्वाभासं तथैव च ॥ गौ.का.४.४५. (२३४) यश्चायं क्रियाकारकफलात्मक आभास ईषदपि परमार्थवस्तु न स्पृशति तत्र मोहमात्रोपदानात् । (नै. सि. २.५१.) (२३५) बृ. उ. भा.वा १.२.१५७, १४, १३२८, २.४.४२, ३.४. १०५ (२३६) नात्माभासत्वसिद्धिश्चेदात्मनो ग्रहणात्पृथक् । मुखादेश्चपृथक् सिद्धिरित्यन्योन्यसंश्रयः ।। (उ.सा.२.१८.१) (२३७) तदन्यत् यत्तदाभासम् । (उ.सा.२.३.१९१) (२३८) अविचारितसंसिद्धतमेवोक्तं स्यात्तदुद्भवम् । (उ.सा. २.१.४) (२३९) बुद्ध्यादिकार्यसंहारे प्रत्यक् चैतन्यरुपिणः । चिबिम्बस्यापि संहारो जलार्कप्रविलापवत् ।। (बृ.उ.भा.वा.४.३.११७४) (२४०) बृ.उ.भा.वा.४.३.७३) (२४१) आभासस्य कार्यकारणतया वक्तुमशक्यत्वेन मायामयो मिथ्या वा कथ्यते । डॉ- मुरलीधर पाण्डेय - श्रीशंकरात् प्रागद्वैतवाद मु.पु. ४२. (२४२) आभासस्यापि जडाजडविलक्षणेनानिर्वचनीयत्वात् ।। (सिद्धांत बिन्दु-१ (२४३) आभासस्य मिथ्यात्वात् । (पञ्चदशी- ७.१५) मायिकोऽयं चिदाभास- (पञ्चदशी ७.२१७) दधत् विभाति पुरत: आभासोऽतो भ्रमो भवेत् -(पञ्चदशी-८.५२) ईषद्भासनमाभासः प्रतिबिम्बस्तथाविधः बिम्बलक्षणहीनः सन् बिम्बवद् भासते हि सः । (पञ्चदशी - ८.३२)
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