SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, सांख्यदर्शन का विशेषार्थ ३२५ अब उपादानकारण की असिद्धि तथा दूसरे दोष भी बौद्धो के मत में बताते है । वह इस अनुसार से - पूर्ववस्तु की विद्यमानता के समय उत्तरवस्तु के साथ संबंध न होने से, अन्वय और व्यतिरेक इन दोनो का व्यभिचार होने से कार्यकारणभाव नहीं हो सकता। ___ कहने का मतलब यह है कि, जिससे होने से जो होता है उसे अन्वय कहा जाता है। जैसे सूर्य के होने से दिन होता है। और जिसके अभाव से जिसका अभाव हो उसे व्यतिरेक कहा जाता है। जैसे सूर्य के अभाव से दिन का अभाव होता है। यह अन्वय और व्यतिरेक का अभाव है। इसलिए उपादान-उपादेयभाव अर्थात् कार्यकारणभाव नहीं बन सकता है। ___ वस्त्र का उपादान कारण सूतर है, इस अनुसार से अन्वयव्यतिरेक से जान सकते है। जैसे कि, सूतर के होने से ही वस्त्र होता है। और सूतर का अभाव होने के बाद वस्त्र रहता ही नहीं है ।क्षणिकतावादि के मत में इस अनुसार से अन्वय और व्यतिरेक न होने से कार्यकारणभाव नहीं बन सकता। विज्ञानवाद का खंडन : बाह्यपदार्थो की प्रतीति होने से केवल विज्ञान ही है, ऐसा सिद्ध नहीं हो सकता । कहने का मतलब यह है कि, विज्ञान से अतिरिक्त विषय (पदार्थ) भी दिखाई देते है। दूध की जिसको जरुरत है, वह दूधाउ (दूध देनेवाली) गाय को ही ढूंढता है और उसको पाकर दूध दुहकर कृतार्थ होता है। परन्तु दुग्धार्थी मनष्य किसी तत्त्ववेता के पास जाकर तत्त्वज्ञान नहीं सीखता है। इसलिए सिद्ध होता है कि ज्ञान और अर्थ अलग लए केवल विज्ञान ही मानना वह बाधित और प्रमाणशून्य है। वैसे भी केवल विज्ञान मानने में यह भी दोष है। ___ विज्ञानवादि बौद्धेतर विद्वान जिनको आत्मा, पर्वत, समुद्र इत्यादि मानते है, वे सबको यदि विज्ञानवादी विज्ञान ही मानते हो तो जैसे "मैं आत्मा हूं" ऐसी प्रतीति होती है। वैसे "मैं घट हूं," "मैं समुद्र हूं," ऐसी प्रतीति होनी चाहिए, क्योंकि सब विज्ञानस्वरुप तो है ही, परन्तु वैसी प्रतीति होती नहीं है। इसलिए बाह्यपदार्थ मानने ही चाहिए। __ यदि ऐसा कहोंगे कि "यह घट है।" इत्यादि प्रतीति होने में घट आदि की वासना कारण है, तो उसका उत्तर यह है कि आपके मत में घट आदि बाह्यपदार्थ तो थे ही नहीं, तो ऐसी वासना हुई कहाँ से? इसलिए बाह्यपदार्थ और विज्ञान दोनो को मानना चाहिए। पूर्वपक्ष (विज्ञानवादी बौद्ध): क्या स्वप्न के दृष्टांत से और दृश्यत्व हेतु से बाह्य पदार्थो का मिथ्यात्व सिद्ध नहीं हो सकता ? जैसे कि "दृश्य स्वाप्निक पदार्थ की तरह पृथ्वी, पर्वत आदि पदार्थ भी दृश्य होने से मिथ्या है।" उत्तरपक्ष (सांख्य) : बाह्य पदार्थ का यदि अभाव माना जाये, तो विज्ञान का भी अभाव होने से सर्व का अभाव ही होगा। कहने का मतलब यह है कि, यदि बाह्यपदार्थ का स्वीकार न करो तो, विज्ञान भी सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि विषय के सिवा ज्ञान कभी भी नहीं हो सकता । हाथी है, तो हाथी का भी ज्ञान है, परंतु यदि हाथी न हो तो उसका ज्ञान भी न हो । आकाशकुसुम नहीं है, इसलिए उसका ज्ञान भी नहीं है। स्वप्न के दृष्टांत से बाह्यपदार्थ के अपलाप की जो आशा रखी है वह तो केवल दुराशा ही है। क्योंकि स्वाप्निक अर्थ का जाग्रत अवस्था में बाध होता है, परन्तु जाग्रत अवस्था में महसूस होते पदार्थो का किस अवस्था में बाध होता है ? क्या स्वप्न अवस्था में भी ऐसा ज्ञान होता है कि, मैने जो सरित् समुद्रादि पदार्थ जाग्रत अवस्था में देखे है वह गलत है? फिर भी स्वाप्निक पदार्थो की तरह बाह्यपदार्थो को गलत मानो तो स्वप्न में जैसे भोजन की तृप्ति नहीं होती वैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy