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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, सांख्यदर्शन का विशेषार्थ ३२१ सांख्यदर्शनकार पुरुष को अनादिकाल से बंधन में होता है, ऐसा नहीं मानते है। परन्तु पुरुष और प्रकृति के अज्ञानमूलक संयोग के कारण पुरुष बंधन में आके गिरा है। जो लोग जीवात्मा को स्वभाव से ही बंधन मानते है, उनके मत का खंडन करते है। न स्वभावतो बद्धस्य मोक्षसाधनोपदेशविधिः ॥१-७॥सांख्यसूत्र ॥ अर्थात् स्वभाव से बंधे हुए को मोक्ष के साधन के उपदेश का विधान नहीं है। कहने का आशय यह है कि "स्वभाव से ही बंधन माना जाये तो उसको दुःखनिवृत्ति के साधनो का उपदेश करना व्यर्थ है। क्योंकि जो वस्त में जो गण या दोष स्वाभाविक हो उसकी निवत्ति नहीं हो सकती उष्णता स्वाभाविक होने से अग्नि को कोई भी कारण से उष्णता रहित नहीं किया जा सकता । गुणी जब तक रहता है तब तक उसका स्वाभाविक गुण रहता है । जब अग्नि का नाश होता है तब ही उसकी उष्णता का नाश होता है । अथवा उष्णता के नाश के साथ ही अग्नि का नाश होता है। इसके उपर से ऐसा सिद्ध होता है कि, यदि जीवात्मा के बंधन स्वाभाविक हो, तो बंधन के नाश के साथ ही जीवात्मा का नाश होना चाहिए । परन्तु ऐसा नहीं माना जाता । क्योंकि, बंधन का नाश होने पर भी आत्मा का अस्तित्व रहता है । इसलिए आत्मा के बंधन स्वाभाविक नहीं है। पूर्वपक्ष : स्वाभाविक बंधन की निवृत्ति भी हो सकती है। इसलिए तुम्हारी बात यथार्थ नहीं है क्योंकि, "शुद्धपटवद्बीजवच्चेत् ॥ सांख्यसूत्र १।१० ॥ अर्थात् सफेद वस्त्र की तरह, बीज की तरह । कहने का मतलब यह है कि, यदि कोई ऐसी शंका करे कि कपडे का रंग स्वभाव से सफेद है। फिर भी उसको काला या लाल रंग देने से उसका सफेद रंग दूर होता है, वैसे ही बीज में अंकुर उत्पन्न करने की शक्ति स्वाभाविक है । फिर भी उसको रोकने से उसकी स्वाभाविक अंकुरजननशक्ति दूर की जा सकती है, वैसे स्वाभाविक बंधन की भी निवृत्ति तत्त्वज्ञान से की जा सकती है। उत्तरपक्ष (सांख्य): शक्ति का आविर्भाव और तिरोभाव होने से अशक्य का उपदेश नहीं हो सकता । कहने का मतलब यह है कि शक्ति का आविर्भाव और तिरोभाव होता है। इसलिए उक्त दो उदाहरणो से असंभव वस्तु की सिद्धि नहीं होती है। सफेद वस्त्र में काला या लाल रंग देने से सफेद रंग का तिरोभाव होता है। इसलिए धोबी के पास धूलवाने से अथवा अन्य उपाय से वह रंग दूर करके फिर से रंग लाया जा सकता है। बीज में अंकुरजननशक्ति का तिरोभाव ही होता है, क्योंकि वह शक्ति भी वापस लाई जा सकती है, इसलिए स्वाभाविक शक्ति का नाश नहीं होता है। इस कारण से आत्मा में बंधन स्वाभाविक मानना वह योग्य नहीं है। ___ जो लोग काल को बंधन का कारण मानते है, उसका सांख्यो ने निराकरण किया है। न कालयोगतो व्यापिनो नित्यस्य सर्वसम्बन्धात् ।।१-१२ सांख्यसूत्र ।। अर्थात् काल के संबंध से बंधन नहीं होता । व्यापक और नित्य होने से, सभी के साथ संबंध होने से। कहने का मतलब यह है कि, काल बंधन का कारण नहीं है। क्योंकि काल व्यापक और नित्य होने से उसका सर्ववस्तु के साथ संबंध है। मुक्तजीवात्माओ को भी काल के साथ संबंध है, इसलिए यदि काल को बंधन का कारण मानेंगे तो वे भी काल के संबंध में आके बद्ध हो जायेंगे, इसलिए काल को बंधन का कारण मानना यह उचित नहीं है। देश, कर्म भी बंधन के कारण नहीं है, ऐसा सांख्यो का मानना है। साक्षात् प्रकृति भी बंधन का कारण नहीं हो सकती। क्योंकि प्रकृतिरुप कारण से बंधन होता है, यदि ऐसा कहोंगे तो उसको परतंत्रता है। अर्थात् यदि कहो कि प्रकृति स्वयं ही साक्षात् बंधन का कारण है, तो वह ठीक नहीं है,क्योंकि वह भी परतंत्र है। आत्मा का अज्ञानमूलक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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