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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
इस तरह से प्रत्येक आस्तिक दर्शनो का अंतिम ध्येय मोक्ष हैं । यहाँ विभिन्न मतो के आधार पर मोक्ष के स्वरूप के विषय पर विचार किया । अब दर्शन की संख्या कितनी ? इस विषय पर विचार करके प्रत्येक दर्शन का परिचय प्राप्त करने का कार्य करेंगे। षड्दर्शन :
प्रस्तुत ग्रंथ के ग्रंथकार महर्षि ने दर्शनो की संख्या छ: गिनाई है । बाकी के दर्शनो का छ: में अन्तर्भाव किया हैं। ग्रंथ के प्रारंभ में ही बताया है कि, दर्शनानि षडेवात्र मूलभेदव्यपेक्षया । देवतातत्त्वभेदेन ज्ञातव्यानि मनीषिभिः ।।२।
बौद्धं नैयायिकं सांख्य, जैनं वैशेषिकं तथा । जैमिनीयं च नामानि दर्शनानाममून्यहो ।।३।। ___ मूलभेद की अपेक्षा से छ: ही दर्शन हैं । (१) बौद्ध, (२) नैयायिक, (३) सांख्य, (४) जैन, (५) वैशेषिक और (६) जैमिनि । प्रस्तुत ग्रंथ में इन छ: दर्शन का देवता, प्रमाण और तत्त्व के भेद से निरूपण किया गया हैं । __प्रस्तुत ग्रंथकारश्री ने वेदांत दर्शन का मीमांसा दर्शन में ही अंतर्भाव किया है । अपने अन्य शास्त्रवार्ता समुच्चय ग्रंथ में वेदांत दर्शन को स्वतंत्र दर्शन के रुप में ग्रहण करके उसकी मान्यताओं की समीक्षा भी की है । तदुपरांत योगदर्शन सांख्यदर्शन की निकट का दर्शन माना जाता होने से उसका अंतर्भाव सांख्यदर्शन में किया हो, ऐसा मालूम पडता हैं । टीकाकारश्रीने मीमांसा दर्शन के निरूपण का प्रारंभ हो, उसके पहले वेदांत दर्शन का आंशिक निरूपण किया हैं। ___ दर्शनो की संख्या के विषय में बहोत विवाद है । अन्य प्रकाशनो की प्रस्तावना आदि में उसकी बहोत चर्चा हुई हैं ।(38) उस चर्चा को एक ओर रखकर अब क्रमशः प्रत्येक दर्शन का आंशिक निरूपण करेंगे । प्रस्तुत ग्रंथ में असमाविष्ट दर्शनो के विषयो के बारे में परिशिष्ट विभाग में विचारणा की हैं और इस ग्रंथ में ग्रहण नहीं किये हुए विषयो की स्पष्टतायें भी
की गई हैं । वह क्रमशः आगे बताई जायेगी । प्रस्तुत ग्रंथ में जिस क्रम से दर्शनो का निरूपण किया है, उसी क्रम से यहाँ भी परिचय देंगे । परिशिष्टो में समाविष्ट विषयो की आंशिक चर्चा भी योग्य स्थान पर की जायेगी। बौद्धदर्शन : ___ "सर्वं क्षणिकम्" सिद्धांत का प्रतिपादक दर्शन वही बौद्धदर्शन । बौद्धदर्शन जगत के सर्व पदार्थो को क्षणविनश्वर मानते हैं । इसलिए ही वह "क्षणिकवादी" के रूप से पहचाना जाता हैं ।
देवता : बौद्धदर्शन के संस्थापक गौतम बुद्ध हैं । शाक्य गणाधिप शुद्धोदन राजा की मयादेवी रानी की कोख से उनका जन्म हुआ था । उन्नीस वर्ष की आयु में संसार का त्याग किया था और पञ्चीस वर्ष की आयु में उरुवेल में चार आर्यसत्यो की प्रत्यक्ष अनुभूति करके बुद्धत्व की प्राप्ति की थी, ऐसा उनके ग्रंथ और इतिहास ग्रंथ कहते है ।(39) मृगदाव (सारनाथ) में कौडिन्य आदि पांच भिक्षुओं के आगे अपना प्रथम उपदेश देकर "धर्मचक्र प्रवर्तन" किया था ।(40) भिक्षुओं के “संघ" की स्थापना की।
38. श्री आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित 'भारतीय दर्शन' में छः से अधिकदर्शन की चर्चा की है । इसके अलावा अन्य ग्रंथों में भी
अधिक दर्शन की गिनती हुई है । वेदांतदर्शन के पेटाभेद अनेक है । भारतीय दर्शन' पुस्तक में अद्वैतवेदांत दर्शन से भिन्न वैष्णव दर्शन में रामानुजदर्शन, माध्वदर्शन, निम्बार्कदर्शन, वल्लभदर्शन और चैतन्यदर्शन, ऐसे पांच दर्शन के भेद बताये हैं । 39. श्री आचार्य बलदेव उपा.कृत 'भारतीय दर्शन', षष्ठ परिच्छेद, पृ-११९ 40. “धर्मचक्रप्रवर्तन सूत्र" - संयुत निकाय ५५-२-१ (बुद्धचर्या पृ-२३) ।
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