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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
धर्म, बुद्धि और संघ : ये तीन बौद्धदर्शन के रत्न है । (जिससे बौद्धदर्शन की सफलता मानी गई हैं ।) बौद्धदर्शन के उपर आते विघ्नो की नाशक देवी तारादेवी हैं ।(41) गौतम बुद्धने अति कठिन और अतिमृदु मार्ग को छोडकर मध्यम मार्ग अपनाया हैं । उनके आचार, लिङ्ग, वेश और मध्यम मार्ग के अनुसरण की मान्यता आदि का वर्णन बौद्धदर्शन के प्रारंभ के वर्णन में श्लोक ४ की टीका में किया गया हैं ।
• तत्त्वमीमांसा :
गौतम बुद्ध ने चार आर्यसत्य बतायें हैं । सर्व हेय से दूर हो गये है उसे आर्य कहा गया है । साधुओं को यथासंभव मुक्ति प्राप्त करानेवाला या पदार्थो के यथावस्थित वस्तुओं के चिन्तन द्वारा जो हितकारी हो उसे सत्य कहा जाता हैं अथवा सज्जनो को हितकारी हो उसे सत्य कहा जाता हैं । ___ चार आर्यसत्य बौद्धदर्शन के मूलभूत तत्त्व है । (१) दुःख, (२) दुःख समुदय, (३) दुःखनिरोध, (४) दु:खनिरोध मार्ग ।(42) विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार और रूप वे पांच स्कंध ही संसारी जीवो का दुःख हैं । सचेतन या अचेतन परमाणुओं के संघात विशेष को स्कंध कहा जाता हैं । वे स्कंध पाँच हैं । रूपविज्ञान, रसविज्ञान, स्पर्शविज्ञान, गंधविज्ञान
और शब्दविज्ञान विषयक निर्विकल्पक ज्ञान को विज्ञानस्कंध कहा जाता है । सुख-दुःख और असुख-दुःख (सुख-दुःख के अभाव स्वरूप उदासीनता) ये तीन वेदनास्कंध हैं । जो प्रत्ययो में शब्दो के प्रवृत्ति निमित्तो की उद्ग्राहणा उ योजना हो जाती है; उस सविकल्प प्रत्ययो को संज्ञास्कंध कहा जाता हैं । पुण्य-पाप आदि के समुदाय को संस्कार स्कंध कहा जाता हैं । पृथ्वी आदि चार धातुयें और रुपादि विषय रुपस्कंध कहे जाते है । ये पाँचो स्कंध संसारी जीव का दुःख हैं ।(43) स्वस्वकीय (मैं और मेरा) तथा पर-परकीय के सम्बन्ध से जो राग-द्वेषादि दोष उत्पन्न होता हैं, वह दःख समदय नाम का तत्त्व हैं ।(44) संसार के सर्व संस्कार क्षणिक हैं । इस प्रकार की वासना को मार्ग तत्व कहा जाता हैं और वासनाओ के सर्वथा नाश को निरोध (मोक्ष) कहा जाता है ।(45)
बौद्धदर्शनने तत्त्वो का विभाजन तीन प्रकार से किया हैं । (१) स्कंध, (२) आयतन, (३) धातु । स्कंध का स्वरूप और उसके प्रकार उपर देखें है । आयतन बार हैं ।(46) श्रोतादि पाँच इन्द्रिय, शब्दादि पांच विषय, मन और सुखादि धर्मो का आयतन (अतीन्द्रिय विषय) : ये बारह आयतन हैं ।(47) श्रोतादि छ: इन्द्रिय, उसके छ: विषय और (विषयो के संपर्क से उत्पन्न होनेवाले) छ: विज्ञान : ये अठारह धातु हैं।
बौद्धदर्शन के अनुसार जगत की सर्व वस्तुयें स्कंध, आयतन या धातु, ये तीन में से कोई भी एक प्रक्रिया में बाँटा जा सकता हैं । कर्तव्य शास्त्र के विषय में श्री गौतम बुद्धने चार आर्यसत्यो का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा हैं कि... (१) इस संसार में जीवन दुःखो से परिपूर्ण हैं (दुःखम्) । (२) इन दुःखो का कारण विद्यमान हैं (दुःख समुदय)। (३) इन दुःखों से वास्तविक मुक्ति मिल सकती हैं (दुःखनिरोध) । और (४) इस निरोध के लिए उचित उपाय - मार्ग हैं । (दुःखनिरोध मार्ग)
यह जगत दुःखो से व्याप्त हैं । इस वास्तविकता का कभी भी इन्कार हो सके ऐसा नहीं हैं । इसलिए प्रथम “दुःख" नामका आर्यसत्य गौतमबुद्धने बताया हैं । दुःखो के कारण भी हैं । वह एक नहीं हैं । परन्तु कारणो की एक लम्बी श्रृंखला हैं । उस कारण श्रृंखला को (बौद्धदर्शन में) "द्वादश निदान" की संज्ञा दी हैं । वह द्वादश निदान इस 41. धर्मबुद्धसङ्गरुपं रत्नत्रयम् । तारादेवी शासने विघ्ननाशिनी (षड्.समु. ४) । 42. षड् समु. श्लोक-५ टीका । 43. षड्.समु.
श्लोक-५ टीका । 44. षड्. समु. श्लो-६ टीका। 45. षड्. समु. श्लोक-७ टीका । 46. अंगुत्तय-निकाय ३-१-३४ । 47. षड्. समु. श्लोक-६ टीका ।
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