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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ४२, सांख्यदर्शन २५५ तत्त्वान्युपसंहरन्नाह - तत्त्वो का उपसंहार करते हुए कहते है कि... (मूल श्लो० ) पञ्चविंशतितत्त्वानि संख्ययैवं भवन्ति च । प्रधाननरयोश्चात्र वृत्तिः पंग्वन्धयोरिव-15 ।।४२ ।। श्लोकार्थ : इस अनुसार से संख्या से पच्चीस तत्त्व है। प्रधान और पुरुष का वर्तन विश्व में लंगडे और अंधे के जैसा है। __व्याख्या-चकारो भिन्नक्रमः, एवं चसंख्यया पञ्चविंशतितत्त्वानि भवन्ति । ननु प्रकृतिपुरुषावुभावपि सर्वगतौ मिथःसंयुक्तौ कथं वर्तेते इत्याशंक्याह-'प्रधानेत्यादि' । प्रधानपुरुषयोश्चात्र विश्वे पंग्वन्धयोरिव वृत्तिर्वर्तनम् । यथा कश्चिदन्धः सार्थेन समं पाटलिपुत्रनगरं प्रस्थितः, स सार्थश्चौरैरभिहतः । अन्धस्तत्रैव रहित इतश्चेतश्च धावन वनान्तरपङ्गना दृष्टोऽभिहितश्च “भो भो अन्ध मा भैषीः, अहं पङ्गुर्गमनादिक्रियाविकलत्वेनाक्रियश्चक्षुर्त्यां सर्वं पश्यन्नस्मि, त्वं तु गमनादिक्रियावान्न पश्यसि” । ततो अन्धेनोचे-“रुचिरमिदम्, अहं भवन्तं स्कन्धे करिष्यामि, एवमावयोर्वर्तनमस्तु” इति । ततोऽन्धेन पर्द्रष्टुत्वगुणेन स्वं स्कन्धमधिरोपितो नगरं प्राप्य नाटकादिकं पश्यन् गीतादिकं चेन्द्रियविषयमन्यमप्युपलभ्यमानो यथा मोदते, तथा पङ्गकल्पः शुद्धचैतन्यस्वरूपः पुरुषोऽप्यन्धकल्पां जडां प्रकृति सक्रियामाश्रितो बुद्ध्यध्यवसितं शब्दादिकं स्वात्मनि प्रतिबिम्बितं चेतयमानो मोदते, मोदमानश्च प्रकृतिं सुखस्वभावां मोहान्मन्यमानः संसारमधिवसति ।।४२ ।। टीकाका भावानुवाद : श्लोक के पूर्वार्ध में रहा हुआ "च" "भिन्न क्रम में है।" भवन्ति के बाद रहे हुए "च" को ‘एवं' बाद में जोडना (इसलिए अर्थ इस तरह से होगा-) और इस अनुसार से संख्या से पच्चीस तत्त्व है। शंका : सर्वगत प्रकृति तथा पुरुष दोनो भी (भिन्न स्वभाववाले होने पर भी) परस्पर संयुक्त कैसे रहते है? समाधान : विश्व में प्रधान और पुरुष का व्यवहार लंगडे और अंधे के जैसा है। जैसे किसी अंधे ने सार्थके साथ पाटलीपुत्र नगर की ओर प्रस्थान किया। वह सार्थ चोरो के द्वारा लूटा गया। तब अंध सार्थ से रहित अकेला पड गया और वन में फिरते फिरते वन में लंगडे को देखा और उस लंगडे के द्वारा कहा गया कि... हे अंध, तुम घबराना नहि। मैं पंगु होने से गमनादि क्रिया नहीं करता हूं। परन्तु आंख से सब कुछ देखता हूं और तुम देख नहीं सकते हो, परन्तु गमनादि क्रियावान् हो । तब अंध के द्वारा लंगडे को कहा गया कि "बहोत अच्छी बात की, मैं तुमको कन्धे पर बिठाऊंगा। (और (D-15) - तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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