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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ४०,४१, सांख्यदर्शन
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शब्द समुच्चयार्थक है। इस तरह से दस हुए, ग्यारहवां मन है। मन जब बुद्धीन्द्रिय के साथ हो, तब बुद्धीन्द्रियरुप बन जाता है और कर्मेन्द्रिय के साथ हो, तब कर्मेन्द्रियरुप बन जाता है।
वह मन वास्तविक अर्थ के बिना भी संकल्पात्मक है। जैसे कि, कोई बटुक ब्राह्मण शिष्य सुनता है कि, 'दूसरे गांव में भोजन है' वहाँ उस बटुक को संकल्प होता है कि, वहाँ में जाउंगा, वहाँ में क्या गुडदधिरुप भोजन पाऊंगा या दधि पाऊंगा या कुछ भी नहि पाऊंगा? ऐसा संकल्पात्मक मन होता है।
तथा अहंकार से सूक्ष्म संज्ञावाली पाँच तन्मात्राएं उत्पन्न होती है। उसमें शुक्ल, कृष्णादि रुपविशेष को रुपतन्मात्रा कहा जाता है। तीखा, कडुआ इत्यादि रसविशेष को रसतन्मात्रा कहा जाता है। सुरभि आदि गंधविशेष को गंधतन्मात्रा कहा जाता है। मधुरादि शब्द विशेष को शब्द तन्मात्रा कहा जाता है। मृदु, कठिन इत्यादि स्पर्श विशेष को स्पर्शतन्मात्रा कहा जाता है। इस तरह से ये सोलह का समुदाय है। ॥३८-३९।। __ अथ तन्मात्रेभ्यः पञ्चभूतान्युत्पद्यन्त इत्याह - अब पाँच तन्मात्रा में से पाँच भूत उत्पन्न होते है, वह कहते है - (मूल श्लो०)D-11रूपात्तेजो रसादापो गन्धाद्भूमिः स्वरान्नभः ।
स्पर्शाद्वायुस्तथैवं च पञ्चभ्यो भूतपञ्चकम् ।।४०।। श्लोकार्थ : रुपतन्मात्रा में से तेजभूत, रसतन्मात्रा में से जलभूत, गंधतन्मात्रा में से पृथ्वीभूत, स्वर (शब्द) तन्मात्रा में से आकाश तथा स्पर्शतन्मात्रा में से वायु उत्पन्न होता है। इस तरह से पाँच तन्मात्रा में से पाँच भूत उत्पन्न होते है। ॥४०॥
व्याख्या-रूपतन्मात्रात्सूक्ष्मसंज्ञात्तेजोऽग्निरुत्पद्यते, रसतन्मात्रादापो जलानि जायन्ते, गन्धतन्मात्रात्पृथिवी समुत्पद्यते, स्वराच्छब्दतन्मात्रादाकाशमुद्भवति, तथा स्पर्शतन्मात्राद्वायुः प्रादुर्भवति, एवं च पञ्चभ्यस्तन्मात्रेभ्यो भूतपञ्चकं भवतीति ।।४।। टीकाका भावानुवाद :
सूक्ष्मसंज्ञक रुपतन्मात्रा में से अग्नि उत्पन्न होता है। रसतन्मात्रा में से जल उत्पन्न होता है। गंधतन्मात्रा में से पृथ्वी का प्रादुर्भाव होता है। शब्दतन्मात्रा में से आकाश का उद्भव होता है। तथा स्पर्शतन्मात्रा में से वायु का प्रादुर्भाव होता है । इस अनुसार से पाँचतन्मात्रा में से भूतपंचक उत्पन्न होता है । ॥४०॥ (मूल श्लो०) एवं चतुर्विंशतितत्त्वरूपं निवेदितं सांख्यमते प्रधानम् ।
___D-12अन्यस्त्वकर्ता विगुणश्च भोक्ता तत्त्वं पुमान्नित्यचिदभ्युपेतः ।।४१।। श्लोकार्थ : इस अनुसार से सांख्यमत के चौबीस तत्त्वरुप प्रधान नाम के मूलतत्त्व का निरुपण किया गया। प्रधान से भिन्न पुरुषतत्त्व है। वह अकर्ता, विगुण, भोक्ता तथा नित्य चेतन है। (D-11-12) - तु० पा० प्र० प० ।
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