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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक ३४, सांख्यदर्शन
श्लोकार्थ : कुछ सांख्य निरीश्वरवादि है। (तो) कुछ ईश्वर को देवता मानते है । वे सब भी सांख्यो के तत्त्वो की संख्या २५ है | ||३४||
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व्याख्या- केचित्सांख्या निर्गत ईश्वरो येभ्यस्ते निरीश्वराः, केवलाध्यात्मैकमानिनः, केचिदीश्वरदेवताः - ईश्वरो देवता येषां ते तथा, तेषां सर्वेषामपि निरीश्वराणां सेश्वराणां चोभयेषामपि तत्त्वानां पञ्चविंशतिः स्यात् । सांख्यमते किल दुःखत्रयाभिहतस्य पुरुषस्य तदुपघातहेतुस्तत्त्वजिज्ञासोत्पद्यते । आध्यात्मिकमाधिदैविकमाधिभौतिकं चेति दुःखत्रयम् । अत्राध्यात्मिकं द्विविधं, शारीरं मानसं च । तत्र वातपित्तश्लेष्मणां वैषम्यनिमित्तं यदुःखमात्मानं देहमधिकृत्य ज्वरातीसारादि समुत्पद्यते तच्छारीरम्, मानसं च कामक्रोधलोभमोहेर्ष्याविषयादर्शननिबन्धनम्, सर्व चैतदान्तरोपायसाध्यत्वादाध्यात्मिकं दुःखम् । बाह्योपायसाध्यं दुःखं द्वेधा, आधिभौतिकमाधिदैविकं । तत्राधिभौतिकं मानुषपशुपक्षिमृगसरीसृपस्थावरनिमित्तं, आधिदैविकं यक्षराक्षसग्रहाद्याशहेतुकम् । अनेन दुःखत्रयेण रजः परिणामभेदेन बुद्धिवर्तिनाभिहतस्य प्राणिनस्तत्त्वानां जिज्ञासा भवति दुःखविघाताय । तत्त्वानि च पञ्चविंशतिर्भवन्ति ।। ३४ ।।
चेति
टीकाका भावानुवाद :
कुछ सांख्यो ने ईश्वर को नहीं माना है। केवल एक अध्यात्म को माना है । (निर्गत ईश्वरो येभ्यस्ते निरीश्वराः - इस व्युत्पत्ति से निरीश्वर शब्द बना है ।) कहने का मतलब यह है कि, कुछ सांख्य ईश्वर को देवता नहीं मानते है। ईश्वर सृष्टि का सर्जन नहीं करते है। कुछ सांख्य ईश्वर को देवता मानते है, वे सेश्वरवादि कहे जाते है । वे सेश्वरवादि और निरीश्वरवादि दोनो भी सांख्यो के तत्त्वो की संख्या पच्चीस (२५) है। सांख्यमत में (माना जाता है कि) तीन प्रकार के दुःखो से पिडीत पुरुषो को उन दुःखो के विघात के कारणरुप तत्त्वजिज्ञासा उत्पन्न होती है । वे दुःख के तीन प्रकार इस अनुसार है । (१) आध्यात्मिक दुःख, (२) आधिदैविक दुःख और (३) आधिभौतिक दुःख ।
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आध्यत्मिक दुःख दो प्रकार का है। (१) शारीरिक, (२) मानसिक । उसमें वात-पित्त-कफ की विषमता से आत्मा को शरीर के आश्रय से बुखार, अतिसार आदि जो दुःख उत्पन्न होता है, उसे शारीरिक दुःख कहा है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, इर्ष्या, विषयादर्शन के कारण (मनमें) उत्पन्न होता दुःख मानसिक दुःख, कहा जाता है। यह वात-पित्तादि की विषमता या काम क्रोधादि विकार अंदर ही अंदर उत्पन्न होते है, बाहर A दुःखत्रयाभिघाताज्जिज्ञासा तदभिघातके हेतौ । सांख्य कारिका ।। कि पुनस्तदुःखत्रयम् ? तदाह - आध्यात्मिकम्, आधिभौतिकम्, आधिदैविकम् । तत्र प्रथमं द्विविधं शारीरं मानसं च । तत्र शारीरं वातपित्तश्लेष्मणां देहधातूनां वैषम्यात् यद् दुःखमात्मानं देहमधिकृत्य ज्वरातीसारादि प्रवर्तते । मानसं प्रियवियोगादप्रियसंयोगाच्च द्विविधम् । एतदाध्यात्मिकं दुःखमभिहितम् । आधिभौतिकं तु भूतान्यधिकृत्य यत्प्रवर्तते मानुषपशुपक्षिसरीसृपस्थावरनिमित्तम् । आधिदैविकं तु दिवमधिकृत्य यत्प्रवर्तते शीतोष्णवातवर्णादिकम् । एवमेतैस्त्रिभिर्दुः खैरभिहतस्यासुरिसगोत्रस्य ब्राह्मणस्य जिज्ञासा समुत्पन्ना । सांख्य रिडी भार वृत्ति ।
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