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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ३४, सांख्यदर्शन
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परिव्राजक (सांख्य मत के अनुयायि) है। उस परिव्राजको को उनके भक्त "ॐ नमो नारायणाय" कहकर वंदन करते है और परिव्राजक (सामने) “नारायणाय नमः" कहते है। वे परिवाज्रकजीवो की दया के लिए मुखमें से निकलती हुई सांस को रोकने के लिए लकडी की मुखवस्त्रिका रखते है । उसको महाभारत में "बीटा" कही गई है। वे कहते है कि, हे ब्रह्मन् ! एक हूस्वाक्षर का उच्चारण करते समय नाक में से निकलती हुई सांस से सेंकडो जीव मरते है ।।१।।
वे लोग पानी के जीवो की दया के लिए स्वयं गलनक (छनना) रखते है। और छनना रखने का भक्तो को उपदेश देते है। (उस छनने का माप बताते हुए कहते है कि..) ३६ अंगुल लम्बा और २० अंगुल चौडा दृढ छनना करना चाहिए। (और उससे) बारबार जीवो को ढुंढना चाहिए = रक्षण करना चाहिए। (१) तथा मीठे पानी से क्षारवाला पानी के जीव मर जाते है और क्षारवाले पानी से मीठे पानी के जीव मर जाते है। इसलिए मीठे और क्षारवाला पानी को इकट्ठा नहीं करना ।।२।। मकडी (लूता) के मुख की लार में से द्रवित (गलित) जो बिन्दु है, उसमें सूक्ष्म जंतु होते है। वे सूक्ष्म जीव भौरे के जैसे हो, तो तीनो लोक में भी समाविष्ट नहीं होते है ॥३॥"
इस तरह से जीवरक्षा के विषय की मीमांसा में सांख्य परिव्राजको का छनने के बारे में विचार है। कुछ सांख्यो ने ईश्वर को देव माना है। कुछ (१)सांख्य निरीश्वरवादि है। उसमें जो निरीश्वरवादि है, उनके देवता नारायण है। उनके आचार्य विष्णु, प्रतिष्ठाकारक, चैतन्य आदि शब्दो से बुलाये जाते है। उनके मत के वक्ता कपिल, आसुरि, पंचशिख, भार्गव, उलूकादि है। इसलिए सांख्य, कपिल आदि नामो से उनका व्यवहार होता है, वे बुलाये जाते है। कपिल का परमर्षि भी नाम है। इसलिए वे पारमर्ष भी कहा जाते है।
सांख्य लोगो की बस्ती वाराणसी में ज्यादा है। बहोत महिनो के उपवास करनेवाले ब्राह्मण अचिमार्ग से विरुद्ध धूममार्ग का अनुसरण करते थे। (अर्चिमार्ग यानी देवायनमार्ग तथा धूममार्ग यानी पितृयानमार्ग। वे दोनो का स्वरुप अन्य ग्रंथो से जान लेना।) परन्तु सांख्य लोग अर्चिमार्ग का अनुसरण करनेवाले होते है। इसलिए ही वेदप्रिय ब्राह्मण यज्ञमार्ग का अनुसरण करनेवाले होते है। परन्तु सांख्य लोग हिंसा से भरे हुए वेदनिर्दिष्ट यज्ञो से विरत अध्यात्मवादि लोग है। वे लोग अपने मत के महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि - खूब हँसो, खूब पीओ, मस्ती आनंद करो, खूब खुशी से मौज करो, हररोज इच्छानुसार भोगो को उपभोग करो, (परन्तु) यदि आपने कपिलमत को जाना है, तो बिना विलंब मोक्षसुख को प्राप्त करोंगे। दूसरे शास्त्रमें भी कहा है कि..."प्रकृति इत्यादिक २५ तत्त्व को जाननेवाला, चाहे वह आश्रम में रहे, चाहे वह शिखा रखे, चाहे सिर पे मुंडन करवाये या जटा रखे, परन्तु मुक्त होता है, उसमें संशय नहीं है। (३३) अथ शास्त्रकारः सांख्यमतमुपदर्शयति । अब शास्त्रकार परमर्षि सांख्यमत को बताते है। (मूल श्लो०) सांख्या निरीश्वराः केचित्कंचिदीश्वरदेवताः ।
सर्वेषामपि तेषां स्यात्तत्त्वानां पञ्चविंशतिः ।।३४ ।। (१) सांख्यदर्शन का विशेषार्थ पीछे ( दर्शननिरुपणोत्तर ) देखना ।
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