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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - ३२, नैयायिक दर्शन C-89 दसिद्धान्तो नाम निग्रहस्थानं भवति २१ । C - 88 हेत्वाभासाश्च यथोक्ता असिद्धविरुद्धादयो निग्रहस्थानम् -8१ २२ । इति भेदान्तरानन्त्येऽपि निग्रहस्थानानां द्वाविंशतिर्मूलभेदा निवेदिता इति । तदेवं -' छलजातिनिग्रहस्थानस्वरूपभेदाभिज्ञः स्ववाक्ये तानि वर्जयन्परप्रयुक्तानि समादधद्यथाभिमतसाध्यसिद्धिं लभत इति ।। टीकाका भावानुवाद : (१८) मतानुज्ञा निग्रहस्थान : स्वपक्ष में दूसरो के द्वारा दीये गये दोष का उद्धार किये बिना, बदले में उस दूषण को ही परपक्ष में देनेवाले को मतानुज्ञा नाम का निग्रहस्थान होता है । २३३ जैसे कि, “चोरो भवान् पुरुषत्वात्, प्रसिद्धचौरवत् " प्रसिद्ध चोर की तरह, आप भी पुरुष होने से चोर हो, क्योंकि पुरुष हो । यहाँ प्रतिवादीने दीये हुए दोष का उद्धार किये बिना ही वादीने आप भी चोर है, ऐसा कहा तो वादीने प्रतिवादी के द्वारा दिये गये, चौरपन के दोष का स्वीकार कर लिया होता है। क्योंकि "अप्रतिषिद्धमनुमतं भवति" अर्थात् प्रतिषेध नहीं करने से अनुमति (आ) जाती है। इस तरह से वादी प्रतिवादी के मत की अनुज्ञा से निगृहीत किया जाता है । ( न्यायसूत्र : स्वपक्षदोषाभ्युपगमात् परपक्षदोषप्रसङ्गो मतानुज्ञा । ॥५- २ - २१ ॥ अर्थ स्पष्ट है ।) (१९) पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रहस्थान : निग्रहस्थान में प्राप्त (आये हुए) का निग्रह न करना, वह पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रहस्थान कहा जाता है । पर्यनुयोज्य अर्थात् निग्रहस्थान में आने पर अवश्य यह कहना चाहिए कि, आप निग्रहस्थान में आ के पडे है। इसलिए निगृहीत हुए हो। उसकी उपेक्षा करके जो निग्रह नहीं किया जाता है, वह पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रहस्थान के द्वारा निगृहीत होता है। कहने का मतलब यह है कि, वादी अथवा प्रतिवादी निग्रहस्थान में आया हो, फिर भी तुम कुछ खास प्रकार के निग्रहस्थान में आ गये हो। ऐसा नहीं कहना, उसका नाम पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रहस्थान है । इस तरह से परस्पर एकदूसरे की उपेक्षा करते रहने से जल्परुप कथा का अंत ही नहीं आयेगा । इसलिए जल्प करनेवाले वादी या प्रतिवादी दोनो में से कोई भी निग्रहस्थान में आ जाये तो स्पष्ट कह देना चाहिए कि, तुम निग्रहस्थान में आ गया है। ऐसा कथन जो वादी या प्रतिवादी निग्रहस्थान में आया न हो, वह कर सकता है । ( न्यायसूत्र : निग्रहस्थानप्राप्तस्यानिग्रहः पर्यनुयोज्योपेक्षणम् । ॥५- १ - २१ ॥ अर्थ स्पष्ट है ।) (२०) निरनुयोज्यानुयोग निग्रहस्थान : निग्रहस्थान में आया न हो, फिर भी निग्रहस्थान में आ गया है, ऐसा कहना वह निरनुयोज्यानुयोग नाम का निग्रहस्थान होता है । अप्रमादि, निग्रह को अयोग्य ऐसे उपपन्नवादि को भी "तुम निगृहीत हुए हो" इस अनुसार (प्रतिवादी के द्वारा) जो कहा जाता है । वह प्रतिवादी • इस अनुसार असद्भूत दोष के उद्भव के द्वारा निगृहीत होता है । (C-88-89-90) - तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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