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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक ३१, नैयायिक दर्शन
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का “नया” और “नवसंख्या" ऐसे दो अर्थ होते है । ऐसे समय कोई व्यक्ति वक्ता के अभिप्राय से भिन्न अर्थ की कल्पना करके “कुतः एक एव कूपो नवसंख्योदकः ?" इस तरह से उसके वचन का विघात (खंडन) करता है, उसे छल कहा जाता है ।)
इस छल के तीन प्रकार है । (१) वाक्छल, (२) सामान्यछल, (३) उपचारछल ।
(१) वाक्छल : दूसरो ने कहे हुए अर्थ में अर्थान्तर की कल्पना करना वह वाक्छल है। अर्थात् दूसरे ने उपन्यास किये हुए (रखे हुए) अर्थ में अर्थान्तर (दूसरे अर्थ की) कल्पना द्वारा उसके वचन को गलत सिद्ध करना उसे वाक्छल कहा जाता है ।
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जैसे कि “नव्य कम्बलोऽस्य" इस अनुसार के अभिप्राय से "नवकम्बलको माणवकः इस अनुसार कहने पर भी छलवादि कहते है कि "कुतोऽस्य नवसंख्याः कम्बलाः" तो यह वाक्छल है ।
कहने का मतलब यह है कि "नया कंबल है जिसका वह माणवक" अर्थात् "नये कंबलवाला माणवक" ऐसे अभिप्राय से वक्ता के बोलने पर भी (नव शब्द के अनेक अर्थ होते होने से) छलवादि वक्ता के अभिप्राय से दूसरे अर्थ की कल्पना करके ९ (नौ) कंबल इसके पास कहां से? ऐसा छल करके वक्ता के वाक्य को गलत साबित करने का प्रयत्न करे, उसे वाक्छल कहा जाता है।
(२) सामान्य छल : संभावना द्वारा अतिसामान्य के उपन्यास में भी हेतुत्व के आरोप द्वारा उसका निषेध करना उसे सामान्य छल कहा जाता है। कहने का मतलब यह है कि, संभवित होनेवाला अर्थ का अतिसामान्य (जो सामान्यरुप धर्म किसी जगह उल्लंघन करे, उसे अतिसामान्य कहा जाता है । उस अतिसामान्य) के साथ संबंध लगा के असंभवित अर्थ की कल्पना करना उसका नाम सामान्यछल है ।
जैसे कि, किसी सभा में कोई व्यक्ति ने किसी पवित्र और विद्वान ब्राह्मणमात्र को ध्यान में रखकर कहा कि "अहो खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्नः " अर्थात् यह ब्राह्मण कितना सदाचारी और विद्वान है ।
इस ब्राह्मण की स्तुति के प्रसंग में, (इस वाक्य को सुनकर वाक्य को अनुमोदन (समर्थन) देते हुए) किसी ने कहा कि ‘“संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपत्" बाह्मण में विद्या और पवित्र आचरण होना यह संभवित है ।
यह सुनकर ब्राह्मणत्व में हेतुत्व का आरोप करके (उपरोक्त विधान का) खंडन (निराकरण) करता हुआ छलवादि कहता है कि यह हेतु व्रात्य के साथ अनैकान्तिक है । क्योंकि "यदि हि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपद् भवति, तथा व्रात्येऽपि सा भवेत् । व्रात्योऽपि ब्राह्मण एव ।” अर्थात् यदि ब्राह्मण में विद्या और सदाचार संभवित हो, तो व्रात्य भी ब्राह्मण है । इसलिए वह भी विद्या और सदाचार संपन्न होना चाहिए ।
इसे सामान्यछल कहा जाता है । (क्योंकि ब्राह्मणत्व यह सामान्य वस्तु है और उसका विद्या और
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