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________________ २०२ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ३१, नैयायिक दर्शन से शब्द की अनित्यता सिद्ध होती है, तो शब्द की नित्यता भी सिद्ध हो जायेगी। जैसे कि, "नित्यः शब्दः पक्षसपक्षयोरन्यतरत्वात सपक्षवत् ।" अथवा एकके द्वारा (शब्द की अनित्यता सिद्ध करने के लिए) ऐसा कहा जाता है कि "अनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेर्घटवत् ।" तब दूसरे के द्वारा (शब्द की नित्यता सिद्ध करने) कहा गया कि, "नित्यः शब्दोऽनित्यधर्मानुपलब्धेराकाशवत् ।” इस प्रकार ये सब अनुमानप्रयोग में एक भी साधन ऐसा बलवान (मजबूत) नहीं है कि, जो दूसरे के साधन का बाध करनेवाला हो । अर्थात् प्रकरण की समीक्षा पूरी करे वैसा एक भी हेतु नहीं है। इसलिए वह त्रिस्वरुपवान् हेतु प्रकरणसम है। ये हेत्वाभास निग्रहस्थान के अंतर्गत आ जाते है। फिर भी ये हेत्वाभास न्याय का विवेक करते हुए वाद में वस्तुशुद्धि को करते है। इसलिए उसे निग्रहस्थान से पृथक् (भिन्न) ही कहा जाता है। __ “छलं कूपो नवोदकः” इति । परोपन्यस्तवादे स्वाभिमतकल्पनया वचनविघात छलम्C-47 । तत्त्रिविधंC-48 वाक्छलं सामान्यच्छलमुपचारछलं च । परोक्तेऽर्थान्तरकल्पना वाक्छलम्-49 । यथा नव्यः कम्बलोऽस्येत्यभिप्रायेण नवकम्बलो माणवक इत्युक्ते छलवाद्याह, कुतोऽस्य नवसंख्याः कम्बला इति १ । संभावनयातिप्रसङ्गिनोऽपि सामान्यस्योपन्यासे हेतुत्वारोपणेन तन्निषेधः सामान्यछलम्-50 । यथा अहो नु खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्न इति ब्राह्मणस्तुतिप्रसङ्गे कश्चिद्वदति संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपदिति । तच्छलवादि ब्राह्मणत्वस्य हेतुत्वमारोप्य निराकुर्वन्नभियुङक्ते । व्रात्येनानैकान्तिकमेतत्, यदि हि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपद्भवति, तदा व्रात्येऽपि सा भवेत् । व्रात्योऽपि ब्राह्मण एवेति २ । औपचारिके प्रयोगे मुख्यार्थकल्पनया प्रतिषेध उपचारछलम्-51 । यथा मञ्चाः क्रोशन्तीत्युक्ते छलवाद्याह, मञ्चस्थाः पुरुषाः क्रोशन्ति, न मञ्चास्तेषामचेतनत्वादिति ३ । अथ ग्रन्थकृच्छलं व्याचिख्यासुराद्यस्य वाक्छलस्योदाहरणमाह, 'कूपो नवोदक' इति, अत्र नूतनार्थनवशब्दस्य प्रयोगे कृते छलवादी दूषयति । कुत एक एव कूपो नवसंख्योदक इति । अनेन शेषछलद्वयोदाहारणे अपि सूचिते द्रष्टव्ये -52 इति ।। टीकाका भावानुवाद : अब छल का स्वरुप कहा जाता है। दूसरो ने उपन्यास किये हुए (रखे हुए) वाद में अपनी इच्छित कल्पना के द्वारा वचन का विघात करना उसे छल कहा जाता है। (अर्थात् जब दूसरे ने एक कथन किया, तब एक शब्द के एक से ज्यादा अर्थ होते होने से, दूसरे द्वारा वक्ता के कथन के अभिप्राय से (मंतव्य से) भिन्न अर्थ की कल्पना करके उसका वाक्य का-वचन का खंडन करना उसे छल कहा जाता है। जैसे कि, "कूपो नवोदकं" यहाँ वक्ता का अभिप्राय "नये पानीवाला कुआ है।" ऐसा कहने का है। परन्तु "नव" शब्द (C-47-48-49-50-51-52)-तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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