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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ३१, नैयायिक दर्शन
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(४) कालात्ययापदिष्टः हेतु का प्रयोग प्रत्यक्ष और आगम से अविरुद्ध (अनुपहत) ऐसे पक्ष में स्वीकार किया गया हो, उसको अतीत्यापदिष्ट कहा जाता है और प्रत्यक्ष तथा आगम से विरुद्ध पक्ष में रहा हुआ हेतु (५०)कालात्ययापदिष्ट कहा जाता है।
जैसे कि, "अनुष्णोऽग्निःकृतकत्वात्" । यहाँ पक्ष अग्नि है। साध्य अनुष्णत्व और हेतु कृतकत्व है। स्पर्शन प्रत्यक्ष से अग्नि उष्ण है, ऐसा ज्ञान होता है। इसलिए प्रत्यक्ष विरुद्ध पक्ष-अग्नि में कृतकत्वहेतु विद्यमान है। इसलिए कृतकत्वहेतु कालात्ययापदिष्ट है।
बाह्मणेन सुरा पेया द्रवद्रव्यत्वात्, क्षीरवत् । यहाँ "ब्राह्मण सुरापान करे" वह आगम से विरुद्ध है । इसलिए द्रवद्रव्यत्वहेतु कालात्ययापदिष्ट है।
(५) प्रकरणसम : स्वपक्ष की सिद्धि की तरह परपक्ष की सिद्धि भी होती है, वह तीन स्वरुपवाला हेतु (५१)प्रकरणसम हेत्वाभास कहा जाता है। अर्थात् प्रकरण, पक्ष और प्रतिपक्ष तीनो में तुल्य होता है।
(निर्णय लाने के लिए जिसके उपर विचार होता है। उसे प्रकरण कहा जाता है। साध्यवाला पक्ष और साध्याभाववाला प्रतिपक्ष कहा जाता है। हेतु का यह काम है कि ऐसे स्थान पे निर्णय करना कि जिससे प्रकरण की समीक्षा पूरी हो जाये और उसके साथ पक्ष और प्रतिपक्ष भी दूर हो जाये । परन्तु ऐसे स्थान पे वादि और प्रतिवादि अपनी असमर्थता के कारण ऐसा हेतु रखता है, कि जिससे प्रकरण का विचार चलता ही रहे, निर्णय न दे सके। तब वह हेतु प्रकरण जैसा ही हुआ अर्थात् प्रकरणसम हुआ।) जैसे कि "अनित्यः शब्दः पक्षसपक्षयोरन्यत्वात् सपक्षवत्" ऐसा एकके द्वारा कहा गया (तब) दूसरे ने कहा कि, इस प्रकार
(५०)कालात्ययापदिष्ट : न्यायसूत्र में इसको कालातीत हेत्वाभास कहा गया है। "कालात्ययापदिष्टः कालातीतः । ॥१-२-९॥ साध्यकाल के अभाव में प्रयुक्त हेतु कालात्ययापदिष्ट-कालातीत हेत्वाभास कहा जाता है। तर्कसंग्रहानुसार : नव्यनैयायिको ने कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास को बाध (बाधित) हेत्वाभास कहा है।
"यस्य साध्याभावः प्रमाणान्तरेण निश्चितः स बाधितः" जिस हेतु के साध्य का अभाव प्रमाणान्तर से निश्चित है. उस हेत को बाधित कहा जाता है। जैसे कि "वहिरनष्णो द्रव्यत्वात" यहाँ द्रव्यत्व हेत का साध्य (अनुष्ण) का अभाव (उष्णत्व) स्पार्शन प्रत्यक्ष से वह्नि में निश्चित है। इसलिए द्रव्यत्व हेतु बाधित है। दूसरी तरह से : साध्य की सिद्धि के लिए जो हेतु के रुप में बताया गया हो, उसका एक भाग साध्य के अभाव के
साथ जुड़ता हो, तो उसे कालात्ययापदिष्ट-कालातीत कहा जाता है। (५१) न्यायसूत्रानुसार “यस्मात् प्रकरणचिन्ता स निर्णयार्थमपदिष्ट स प्रकरणसमः" ॥१-२-७॥ जिससे
साध्यसंबंधित समीक्षा चालू ही रहे, ऐसा हेतु निर्णय के लिए दिया गया हो, उसे प्रकरणसम हेत्वाभास कहा जाता है । अनुमान प्रयोग उपर अनुसार जानना । नव्यनैयायिको ने इसको सत्प्रतिपक्ष कहा है उस अनुसार : "साध्याभावसाधकं हेत्वन्तरं यस्य स सत्प्रतिपक्षः" जिसके साध्य के अभाव का साधक दूसरा हेतु है, उस हेतु को सत्प्रतिपक्ष कहा जाता है। जैसे कि "शब्दो नित्यः श्रावणत्वात्, शब्दत्ववद्" यहाँ श्रावणत्व हेतु का साध्य नित्यत्व के अभाव (अनित्यत्व) का साधक "शब्दोऽनित्यः कृतकत्वात्, घटवत्" यह कृतकत्वहेतु है । इसलिए श्रावणत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष है।
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