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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - ३१, नैयायिक दर्शन
(२) विरुद्ध हेत्वाभास : जो हेतु विपक्ष में है और सपक्ष में न हो, वह विरुद्ध हेत्वाभास कहा जाता है। जैसे कि, "शब्दो नित्यः कार्यत्वात् ।" यहाँ कार्यत्व हेतु विपक्ष घट में रहता है और सपक्ष आकाश में नहीं रहता है। इसलिए कार्यत्व हेतु (४८)विरुद्ध है। ___ (३) अनैकान्तिकः पक्षादित्रय में वृत्ति हेतु अनैकान्तिक कहा जाता है। जैसे कि, "अनित्यः शब्दः, प्रमेयत्वात्।" यहाँ प्रमेयत्वहेतु पक्ष शब्द में वृत्ति है। सपक्ष = घट में है और विपक्ष = आकाश में भी है। इसलिए प्रमेयत्वहेतु (४९)अनैकान्तिक है।
(४८) न्यायसूत्र में विरुद्ध हेत्वाभास का लक्षण : "सिद्धान्तमभ्युपेत्य तद्विरोधी विरुद्धः ॥१-२-६॥" सिद्धांतसाध्य को स्वीकार करके, उसका विरोध करनेवाले हेतु का स्थापन करना, उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहा जाता है।
जैसे कि "अयं वह्निमान् हृदत्वात्" - हृदत्व हेतु साध्यरुप जो वह्नि है, उसके अभाव को सिद्ध करता है। क्योंकि सरोवर में अग्नि नहीं होता है। इसलिए हृदत्व हेतु विरुद्ध है।
दूसरी तरह से : साध्याभावव्याप्तो हेतुविरुद्धः साध्याभाव के व्याप्त हेतु को विरुद्ध कहा जाता है। जैसे कि शब्दो नित्यः कृतकत्वात् । यहाँ कृतकत्व हेतु विरुद्ध है। क्योंकि 'जहाँ जहाँ कृतकत्व है, वहाँ वहाँ अनित्यत्व
है' । यह व्याप्ति विशिष्ट कृतकत्व हेतु नित्यत्वाभाव (अनित्यत्व को) व्याप्त है। (४९) न्यायसूत्र में अनैकान्तिक को सव्यभिचार हेत्वाभास कहा हुआ है। "अनैकान्तिकः सव्यभिचारः ॥१-२
७॥ किसी भी दो वस्तु का एक दूसरे में नियत सहचार न होना, उसे सव्यभिचार हेत्वाभास कहा जाता है । जैसे कि नित्यः शब्दः, अस्पर्शत्वात् । शब्द नित्य है । क्योंकि उसमें स्पर्श नहीं है।
अस्पर्शत्व हेतु का साध्य (अर्थात् नित्यत्व) के साथ नियतसहचार नहीं है। "जहाँ जहाँ अस्पर्शत्व है, वहाँ वहाँ नित्यत्व है।" ऐसी व्याप्ति नहीं बाँधी जा सकती। क्योंकि अस्पर्शत्व बुद्धि में हैं और उसमें नित्यत्व नहीं है।
उपरांत "जहाँ जहाँ अस्पर्शत्व है, वहाँ वहाँ अनित्यत्व है" ऐसी व्याप्ति भी नहीं बांधी जा सकती । वयोंकि, अस्पर्शत्व आत्मा में है परन्तु वहाँ अनित्यत्व नहीं है। इस प्रकार शब्द को नित्य सिद्ध करने के लिए दिया गया हेतु सव्यभिचार है। अन्य ग्रंथो में अनैकान्तिक हेत्वाभास के तीन प्रकार कहे गये है। (तर्कसंग्रहानुसार)
(अ) साधारण अनैकान्तिक : “साध्याभावववृत्तिः साधारणोऽनैकान्तिकः" जिस हेतु की साध्याभाववत् में वृत्ति होती है उसको साधारण अनैकान्तिक कहा जाता है। जैसे कि "पर्वतो वह्निमान् प्रमेयत्वात्" यहाँ प्रमेयत्व हेतु साध्याभाववद् = वयभाववद् हृदादि में वृत्ति है। इसलिए साधारण अनैकान्तिक है।
(ब) असाधारण अनैकान्तिक : सर्वसपक्षविपक्षव्यावृत्तः पक्षमात्रवृत्तिरसाधारणः सर्व सपक्ष और विपक्ष से व्यावृत्त और पक्षमात्र में वृत्ति हेतु को असाधारण अनैकान्तिक कहा जाता है। जैसे कि, "शब्दो नित्यः शब्दत्वात्"। यहाँ सर्व सपक्ष नित्यपदार्थ में और विपक्ष अनित्यपदार्थ में शब्दत्व अवृत्ति है और पक्षमात्र में वृत्ति है। इसलिए "शब्दत्व" हेतु असाधारण अनैकान्तिक कहा जाता है।
(क) अनुपसंहारी अनैकान्तिक : अन्वयव्यतिरेकदृष्टांतरहितोऽनुपसंहारी -- अन्वय और व्यतिरेक दृष्टांत से रहित हेतु को अनुपसंहारी अनैकान्तिक कहा जाता है। जैसे कि “सर्वमनित्यं प्रमेयत्वात्" यहाँ सर्व पक्ष होने से (और पक्ष को दृष्टान्त के रुप में न दिया जा सकता होने से )अनित्यत्व की व्याप्ति प्रमेयत्व में है या नहि ? इस संदेह को दूर करने के लिए अन्वयी या व्यतिरेकी भी उदाहरण न मिलने से व्याप्ति नहीं बाँधी जा सकती।
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