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________________ षड्दर्शन समुच्चय, श्लोक - २३, नैयायिक दर्शन गवयानयनाय प्रेषितस्तदर्थमजानानस्तमेवाप्राक्षीत् कीदृग्गवय इति, स प्रोचे यादृग्गौस्तादृग्गवय इति । ततः सोऽरण्ये परिभ्रमन्समानमर्थं यदा पश्यति, तदा तस्य तद्वाक्यार्थस्मृतिसहायेन्द्रियार्थसन्निकर्षाद्गोसदशोऽयमिति यत्सारूप्यज्ञानमुत्पद्यते, तत्प्रत्यक्षफलं, तदेवाव्यभिचार्यादिविशेषणमयं स गवयशब्दवाच्य इति संज्ञासंज्ञिसंबन्धप्रतिपत्तिं जनयदुपमानम् । संज्ञासंज्ञिसंबन्धप्रतिपत्तिस्तूप-मानस्य फलम् । न पुनरागमिकी सा, शब्दस्य तज्जनकस्य तदानीमभावात् । गवयपिण्डविषये च हेयादिज्ञानं यदुत्पद्यते तदिन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यत्वात्प्रत्यक्षफलम् ।। २३ ।। १७२ टीकाका भावानुवाद : व्याख्या : प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधनमुपमानम् ॥२२॥६॥ यहाँ न्यायसूत्र में ‘“यतः” अध्याहार से समजना । इसलिए सूत्र का इस तरह का अर्थ होगा । (१३) प्रसिद्ध वस्तु ऐसी गाय के साथ जो साधर्म्य है, इससे अप्रसिद्ध ऐसे गवय में रहनेवाले साध्य की संज्ञासंज्ञिसंबंध के साधन की प्रतिपत्ति (ज्ञान) साधर्म्यज्ञान से होती है, उसे उपमान कहा जाता है । " और साधर्म्यकी प्रसिद्धि आगमपूर्वक है। इसलिए आगम का सूचन कहता है कि "यथा गौस्तथा गवयः” अर्थात् जैसी गाय होती है वैसी गवय होती है। गाय और गवय का साधर्म्य आगम द्वारा सूचित किया है। यहाँ गवय-जंगली पशुविशेष जानना । कहने का भाव यह है कि, किसी मालिक के द्वारा अपने नोकर को (जंगल में से) गवय लेने के लिए भेजा गया। तब वह नौकर उस गवय को जानता न होने से उसने अपने स्वामी को पूछा कि गवय किस प्रकार का होता है । तब स्वामीने कहा कि जैसी गाय होती है वैसा गवय होता है। उसके बाद जंगल में घूमता घूमता जब गाय के समान अर्थ देखता है, तब उसको "जैसी गाय होती (१३) गाय वह प्रसिद्ध पशु है और गवय (जंगली गाय जैसा पशु) है, यह किसी नगरवासी इन्सान को अप्रसिद्ध अर्थात् अज्ञात है और नगरवासी को किसीने कहा कि "यथा गोस्तथा गवयः" अर्थात् जैसी गाय हो वैसा गवय होता है । इस वाक्य को नैयायिको ने अतिदेशवाक्य कहा है। (एकत्र श्रुतस्यान्यत्र संबंधोऽतिदेशः । ) (अर्थात् एक जगह पे सुने हुएका अन्यत्र संबंध करना उसे अतिदेश कहा जाता है ।) बाद वह इन्सान जंगल में किसी वक्त गया । गाय जैसा पशु देखा और जाना कि यह गाय जैसा पशु है, फिर "यथा गौस्तथा गवयः " इस अतिदेश वाक्य का उसको स्मरण हुआ । इस अनुसार अतिदेशवाक्य के स्मरण के साथ सादृश्यज्ञान से इस पशु का नाम गवय है, ऐसा निश्चयात्मक ज्ञान होता है। इस ज्ञान का नाम उपमितिज्ञान कहा जाता है। और सादृश्यज्ञान उपमान प्रमाण के रूप में माना जाता 1 सादृश्यज्ञान से जो वाच्य - वाचकभावरुप संबंध का ज्ञान होना, उसका नाम उपमितिज्ञान । तर्कसंग्रहन्यायबोधिनी में कहा है कि, " पदपदार्थसम्बन्धज्ञानमुपमिति:" । अर्थात् पद और पदार्थ के संबंध का ज्ञान वह उपमिति । यहाँ “गोसदृशगवयपदवाच्यः" इत्याकारक स्मरण उपमिति के प्रति व्यापार है और " असौ गवयपदवाच्यः” इत्याकारक "उपमिति" फल है अर्थात् उपमान का कार्य है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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