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________________ १६८ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - २०, नैयायिक दर्शन तस्योदाहरणमाह - अब पूर्ववत् अनुमान का उदाहरण कहते है। यथा(मू. श्लोक.) रोलम्बगवलव्यालतमालमलिनत्विषः । वृष्टिं व्यभिचरन्तीह नैवंप्रायाः पयोमुचःB-94 ।।२०।। श्लोकार्थ : जैसेकि भौरा, भैंसा, साँप, हाथी और तापिच्छवृक्षो के (तमालवृक्षो के) जैसी मलिन (श्याम) कान्ति है जिसकी, ऐसे बादल ज्यादातर वृष्टि के व्यभिचारि नहीं होते है। अर्थात् अवश्य वृष्टि (बारीश) करनेवाले होते ही है। (इसलिए ऐसे प्रकार के बादलो को देखकर बारीश का अनुमान होता है।) ॥२०॥ व्याख्या-'यथेति' निदर्शनदर्शनार्थः । रोलम्बा भ्रमराः, गवला अरण्यजातमहिषाः, व्याला दुष्टगजा सर्पाश्च, तमालास्तापिच्छवृक्षः । तद्वन्मलिनाः श्यामलास्त्विषः कान्तयो येषां ते तथा । एतेन मेघानां कान्तिमत्ता वचनेनानिर्वचनीया काप्यतिशयश्यामता व्यज्यते, ‘एवंप्रायाः' एवंशब्द इदंप्रकारवचनः । प्रायशब्दो वाहुल्यवाचकः । तत एवमिदं प्रकाराणां प्रायो बाहुल्यं येषु त एवंप्राया ईदक्प्रकारबाहुल्या इत्यर्थः । एतेन गम्भीरगर्जितत्वाचिरप्रभावत्त्वादिप्रकाराणां बाहुल्यं मेघेषु सत्सूचितम् । उक्तविशेषणविशिष्टा मेघा इह जने वृष्टिं न व्यभिचरन्ति, वृष्टिकरा एव भवन्तीत्यर्थः । प्रयोगस्तु सूत्रव्याख्यावसरोक्त एवात्रापि वक्तव्यः ।।२०।। टीकाका भावानुवाद : व्याख्या : श्लोक में दिया गया "यथा" पद उदाहरण को बताने के लिए संकेत है। रोलम्ब यानि भौंरा, गवल अर्थात् जंगल में उत्पन्न हुआ भैंसा, व्याल अर्थात् दुष्ट हाथी और सर्प, तमाल अर्थात् तापिच्छवृक्ष । भौंरा, भैंसा, सर्प और तापिच्छवृक्षो का जैसी काली (श्याम) कान्तिवाला मेघ है। इसलिए (मेघ की भौरे आदि के साथ तुलना करने से) बादलो की श्यामकान्तिमत्ता वचन से न कही जा सके ऐसी अतिशय श्याम है, वह सूचित किया जाता है। "एवंप्रायाः" पद में एवं' शब्द "इदं" प्रकार को सूचित करता हुआ वचन है। "प्रायः" शब्द बाहुल्य का वाचक है। इसलिए यह "एवं इदं प्रकाराणां प्रायो बाहुल्यं येषु ते एवंप्राया ईदृक्प्रकारबाहुल्या।" अर्थात् इस व्युत्पत्ति अनुसार “एवंप्रायः" का "ईदृकप्रकारबाहुल्य" अर्थ होता है। इससे गभीरगर्जनापन और अचिरप्रभावपन इत्यादि प्रकार ज्यादातर बादलो में सूचित होते है। उक्त विशेषण से विशिष्ट अर्थात् भौंरादि के जैसी काली कान्तिवाला मेघ लोक में बारीश को (वृष्टि को) व्यभिचरित नहीं करता है। अर्थात् वृष्टि करनेवाला ही होता है। यानी कि भौंरा, भैंसा, साँप, हाथी और तमाल के पेड़ो की भांति श्यामकान्तिवाला (B-94)- तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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