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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक १७, १८, १९, नैयायिक दर्शन
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गीयते प्रोच्यते । कारणात्कार्यमनुमानमिहोदितमिति पाठो वा । तत्रास्तीतिशब्दाध्याहारे कारणात्कार्यमस्तीत्यनुमानम् । कारणात्कार्यमस्तीति ज्ञानमिहानुमानप्रस्ताव उदितं प्रोक्तम् । पाठद्वयेऽप्यत्र यल्लिङ्गिज्ञानमनुमानशब्देनोचे, तद्द्द्वितीयव्याख्यानकारिणां मतेन, न तु प्रथमव्याख्यानकर्तृमतेन । प्रथमव्याख्याकारिमतेन हि ज्ञानस्य हेतुरेवानुमानशब्दवाच्यः स्यात् । एवं शेषवत्यपि ज्ञेयम् । यत्र कारणात्स्वज्ञानविशिष्टात्कार्यस्य ज्ञानं भवति, तत्पूर्ववदनुमानम् । अत्र ह्यर्थोपलब्धिहेतुः प्रमाणमिति वचनात्कार्यज्ञानमनुमानस्य फलं, तद्धेतुस्त्वनुमानं प्रमाणम् । तेनात्र कारणं वा तज्ज्ञानं वा कार्यकारणप्रतिबन्धस्मरणं वा कार्यं ज्ञापयत्पूर्ववदनुमानमिति ।। १७-१८१९।।
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टीकाका भावानुवाद :
अब ग्रंथकार श्री ही बालजीवो को (इतनी सारी अनुमान के विषय की चर्चा में) संमोह न हो, इसलिए शेष (बाकी रहीं) व्याख्याओ के प्रकारो की उपेक्षा करके तीन प्रकार के अनुमान के विषय को बताने के लिए “पूर्ववत्” आदि पदो की व्याख्या करते हुए कहते है कि " तत्राद्यम्..." इत्यादि ।
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यहाँ शिष्य को जानने की इच्छा होती है कि, वहाँ अनुमान के पूर्ववत् आदि तीन प्रकार में प्रथम “पूर्ववत्” अनुमान क्या है ? इसका उत्तर देते हुए बताते है कि कारण (लिंग) से कार्य (लिंगी) का ज्ञान हो वह कार्यानुमान। अर्थात् यहाँ अनुमान प्रस्ताव में यह पूर्ववत् अनुमान कहा जाता है । अथवा कारण से कार्य अनुमान को यहाँ अनुमान प्रस्ताव में पूर्ववत् अनुमान कहा गया है।
श्लोक में “अस्ति” शब्द का अध्याहार है। इसलिए कारण से कार्य है, इस अनुसार अनुमान होता है। यहाँ अनुमान प्रस्ताव में कारण से कार्य है, इस अनुसार के ज्ञान को पूर्ववत् अनुमान कहा गया है।
दोनो पाठो में भी यहाँ जो लिंगीज्ञान है, वह अनुमान शब्द से कहा गया है और वह भी दूसरे व्याख्यानकार के मत से कहा गया है। परन्तु प्रथम व्याख्यानकार के मत से नहीं । प्रथम व्याख्यान के मतानुसार तो हेतु ही अनुमान शब्द से वाच्य है । अर्थात् साध्य का ज्ञान जिससे हो, वह हेतु ही अनुमान शब्द से वाच्य है ।
इस अनुसार शेषवत् अनुमान में भी जानना । जहाँ स्वज्ञान के विशिष्टकारण से कार्य का ज्ञान होता है, उसे पूर्ववत् अनुमान कहा जाता है ।
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यहाँ " अर्थोपलब्धिहेतुः प्रमाणम्" अर्थात् अर्थ-पदार्थ की उपलब्धि (ज्ञान) में कारण हो उसे प्रमाण कहा जाता है। इस वचन से कार्यज्ञान अनुमान का फल है और कार्यज्ञान का हेतु अनुमान प्रमाण है । इसलिए यहाँ कारण या कारण का ज्ञान या कार्यकारण के संबंध का स्मरण, सब कार्य को बताता होने से पूर्ववत् अनुमान है ।।१७-१८-१९।।
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