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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक २१, नैयायिक दर्शन
मेघ गंभीरगर्जना और अचिरप्रभाव से युक्त होने से वृष्टि (बारीश) बरसाता ही है ।
अनुमान प्रयोग, सूत्र की व्याख्या करते वक्त कहा हुआ, वही प्रयोग यहाँ भी कहना चाहिए। वह ये रहा "अमी मेघा वृष्ट्युत्पादका, गम्भीरगर्जितत्वेऽचिरप्रभावत्वे च सत्यत्युन्नतत्वात् । ॥२०॥
अथ शेषवद्व्याख्यामाह
अब शेषवत् अनुमान की व्याख्या को कहते है ।
(मू. श्लोक.) कार्यात्कारणानुमानं यच तच्छेषवन्मतम् । तथाविधनदीपूराद्देवो वृष्टो यथोपरि ।। २१ ।।
श्लोकार्थ : कार्य से कारण का अनुमान होता है, उसे शेषवत् अनुमान माना जाता है। जैसे कि, तथाविध नदीकी बाढ़ को देखने से उपरीतनवास में (उपर के गाँवो या प्रदेशो में) बारीश हुई है (ऐसा अनुमान होता है।) अर्थात् नदी की बाढ़ कार्य है, उसे प्रत्यक्ष देखने से उसकी कारण बरसात का अनुमान होता है | ॥२१॥
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व्याख्या-कार्याल्लिङ्गात्कारणस्य लिङ्गिनोऽनुमानं ज्ञानं यत्, चकारः प्रागुक्तपूर्ववदपेक्षया समुच्चये, तच्छेषवन्मतम् । अयमत्र तत्त्वार्थः । यत्र कार्यात्कारणज्ञानं भवति, तच्छेषवदनुमानम् । अत्रापि प्राग्वत्कारणज्ञानस्य हेतुः कार्यं कार्यदर्शनं तत्सबन्धस्मरणं चानुमानशब्देन प्रतिपत्तव्यम् । यथेत्युदाहरणोपन्यासार्थः प्रथममत्र योज्यः । तथाविधशीघ्रतरस्रोतस्त्वफलफेनादिवहनत्वोभयतटव्यापित्वधर्मविशिष्टो यो नदीपूरस्तस्माल्लिङ्गादुपरिदेशे देवो मेघो वृष्ट इति ज्ञानम् । अत्र प्रयोगः प्राग्वत् ।।२१।।
टीकाका भावानुवाद :
व्याख्या : कार्यरुप (लिंगसे) कारणरुप (लिंग) का ज्ञान (अनुमान) जो है, वह शेषवत् अनुमान कहा जाता है। (यहाँ जिस के द्वारा ज्ञान हो वह लिंग और जिसका ज्ञान हो वह लिंगि कहा जाता है। तदनुसार शेषवत् अनुमान में कार्य से कारण का ज्ञान अनुमान होता है । इसलिए कार्य को लिंग के रुप में तथा कारण को लिंग के रुप में बताया है, ऐसा जानना ।)
“च” 'कार पहले कहे हुए पूर्ववत् अनुमान की अपेक्षा से समुच्ययार्थक है । यहाँ तात्पर्यार्थ यह है कि.... कार्य से कारण का अनुमान (ज्ञान) जहाँ होता है, उसे शेषवत् अनुमान कहा जाता है ।
यहाँ भी पहले की तरह कारणज्ञान का हेतु कार्य, कार्य का दर्शन तथा कार्य-कारण के संबंध का स्मरण अनुमान शब्द से स्वीकार करना । अर्थात् कार्य, कार्य का दर्शन और कार्य-कारण के संबंध का स्मरण सब कारण को बताता होने से शेषवत् अनुमान है।
उदाहरण के उपन्यास अर्थे प्रयोजित 'यथा' शब्द, कि जो आखिर में है, वह यहाँ पहले रखना । शेषवत्
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