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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, संपादकीय
प्रस्तुत ग्रंथ में तत् तत् दर्शन के विषयों-सिद्धान्तों-मान्यताओं को तत् तत् दर्शन के प्रमाणभूत ग्रंथों के आलोडनपूर्वक समजाने का प्रयत्न किया हैं । फिर भी मेरे अल्प क्षयोपशम के कारण किसी स्थान पे शास्त्रीय अशुद्धियाँ देखने को मिले तो अधिकृत विद्वानों को मुझे शास्त्रीय संदर्भ सहित भेजने का बिनती-सुझाव हैं ।
पूज्यो की नि:स्वार्थ उपकार वर्षा एवं सहायको की अनुमोदनीय सहायता के बल से यह दीर्घ कार्य निर्विघ्न एवं शीघ्र परिपूर्ण हो रहा है, इसका मुझे आनंद है । मुमुक्षुओं को विशुद्धधर्म की प्राप्ति में यह ग्रंथ सहायक बनकर मुझे और सभी को परमानंद (मोक्ष) का कारण बने यही प्रभु के पास अभ्यर्थना है ।
रत्नत्रयी स्वरूप मोक्षमार्ग के महत्त्वपूर्ण अंगभूत सम्यग्ज्ञान को हर कोई प्राप्त करके अनादिकालीन मिथ्यावासनाओं का उन्मूलन करके मोक्षमार्ग के साधक बनकर परंपरा से मुक्तिसुख को प्राप्त करे यही एक सदा-सदा के लिए मंगल कामना...
कार्तिक वद द्वि. ३, २०६८ - तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद् सोमवार, दि. १४-११-२०११ विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के प्र-प्रशिष्यरत्न
प.पू.पंन्यास प्रवर श्री पुण्यकीर्तिविजयजी गणीवर्यश्रीजी के शिष्य - मु. संयमकीर्तिविजय श्री रत्नत्रयी आराधना भवन, वसंतकुंज, पालडी, अहमदाबाद.
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