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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - १७, १८, १९, नैयायिक दर्शन १५७ जो सर्ववित्कर्तृपूर्वकत्व नहीं है, वह कादाचित्क नहीं है। जैसे कि आकाश । यहाँ सर्वकार्य को पक्ष ही बनाया गया होने से सपक्ष का अभाव है। इसलिये कादाचित्कत्व हेतु केवलव्यतिरेकी है। 'कादाचित्कत्व' हेतु में सपक्षसत्त्व के सिवा बाकी के चार रुपो का आलंबन होने से वह केवलव्यतिरेकी है, वह इस अनुसार है - (१) पक्षधर्मत्व : कदाचित्कत्व हेतु पक्ष में विद्यमान है । (२) विपक्षासत्त्व : विपक्ष ऐसे आकाश में कदाचित्कत्व हेतु विद्यमान (उपस्थित) नहीं है । (३) अबाधितविषयत्व : सर्व कार्यो में (पक्षमें) सर्ववित्कर्तृपूर्वकत्वाभाव (साध्याभाव) का निश्चय नहीं है। इसलिए बाध भी नहीं है । इसलिए कादाचित्कत्व हेतु बाधित नहीं है। (४) असत्प्रतिपक्षत्व : सर्ववित्कर्तृपूर्वकत्वाभाव (साध्याभाव) का साधक प्रतिपक्ष (दूसरा विरोधी) हेतु नहीं है। इसलिए सत्प्रतिपक्षत्व भी नहीं है। अब प्रसंगद्वार से केवलव्यतिरेकी अनुमान बताते है। अप्राणादिमत्त्व के प्रसंग से लोष्ट (पत्थर) की तरह जीवत्शरीर निरात्मक नहीं है। इस अनुसार प्रसंगद्वार है। प्रयोग इस अनुसार है - "इदं जीवच्छरीरं सात्मकं, प्राणादिमत्त्वात् । यह जीवत्शरीर (जीवित शरीर) आत्मासहित है। क्योंकि प्राण से युक्त है। तथा यन्न सात्मकं तन्न प्राणादिमद्यथा लोष्टम् अर्थात् जो सात्मक नहीं है। वह प्राणादि से युक्त नहीं है। जैसे कि "मिट्टी का पत्थर" । इस तरह से प्रसंग द्वारा केवल व्यतिरेकी अनुमान कहा। एवमनुमानस्य भेदान् स्वरूपं च व्याख्याय विषयस्य त्रैविध्यप्रतिपादनायैवमाहुः । अथवा तत्पूर्वकमनुमानं त्रिविधं त्रिप्रकारं । के पुनस्त्रयः प्रकारा इत्याह पूर्ववदित्यादि, B-86पूर्वं कारणं विद्यते यत्रानुमाने तत्पूर्ववत्, यत्र कारणेन कार्यमनुमीयते, यथा विशिष्टमेघोन्नत्या भविष्यति वृष्टिरिति । अत्र कारणशब्देन कारणधर्म उन्नतत्वादिर्ग्राह्यः । प्रयोगस्त्वेवम्, अमी मेघा वृष्ट्युत्पादकाः, गम्भीरगर्जितत्वेऽचिरप्रभावत्वे च सत्यत्युन्नतत्वात्, य एवं ते वृष्ट्युत्पादका यथा वृष्ट्युत्पादकपूर्वमेघास्तथा चामी तस्मात्तथा । टीकाका भावानुवाद : इस तरह से अनुमान के भेदो की और स्वरुप की व्याख्या करके विषय के तीन प्रकार के प्रतिपादन के लिए कहते है। अथवा (उपर जिस तरहसे व्युत्पत्ति करके अनुमान के भेद और स्वरुप की चर्चा की, वैसे यहाँ अलग प्रकार से व्युत्पत्ति करके अनुमान के विषय के तीन प्रकार बताये है।) तत्पूर्वक अनुमान के तीन प्रकार है। वे प्रकार कौन से है ? (B-86)- तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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