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________________ १५६ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - १७, १८, १९, नैयायिक दर्शन टीकाका भावानुवाद : अब ये तीनो रुपो के उदाहरण देते है। (१) अन्वयव्यतिरेकी हेतुः "शब्दोऽनित्यः,कार्यत्वात्, घटादिवत्, आकाशादिवत्।" यहाँ "कार्यत्व" हेतु अन्वयव्यतिरेकी है। क्योंकि उसमें पक्षधर्मत्वादि पाँचो रुपो का आलंबन है। वह इस अनुसार (१) (१०)पक्षधर्मत्व : पक्ष शब्द में हेतु कार्यत्व की वृत्ति है । (२) सपक्षसत्त्व : सपक्ष ऐसे घट में कार्यत्व हेतु की वृत्ति है। (३) विपक्षासत्त्व : विपक्ष ऐसे आकाश में कार्यत्व हेतु की वृत्ति नहीं है। (यहाँ जिस में साध्य का संदेह हो और साध्य की सिद्धि करनी हो, उसे पक्ष कहा जाता है। जिसमें साध्य का निश्चय हुआ हो अर्थात् निश्चयात्मक ज्ञान के विषयभूत साध्य के आश्रय को सपक्ष कहा जाता है। जिसमें साध्य का निश्चय से अभाव हो अर्थात् निश्चयात्मकज्ञान के विषयभूत साध्याभाव के आश्रय को विपक्ष कहा जाता है। (४) अविरुद्धत्व : (अबाधितविषयत्व): पक्ष (शब्द) में साध्याभाव = अनित्यत्वाभाव = नित्यत्व का निश्चय नहीं है। इसलिए बाध भी नहीं है। (५) असत्प्रतिपक्षत्व : शब्द में (अनित्यत्वाभाव = साध्याभाव =) नित्यत्व का साधक दूसरा कोई हेतु नहीं है। इसलिए सत्प्रतिपक्षत्व नहीं है। (२) केवलान्वयी हेतु : "अदृष्टादीनि कस्यचित्प्रत्यक्षाणि, प्रमेयत्वात्, करतलादिवत् ।" यहाँ "कस्यचित्प्रत्यक्षत्व" साध्य में अप्रत्यक्ष ऐसी किसी वस्तु का (विपक्षका) अभाव होने से हेतु केवलान्वयी है। प्रमेयत्व हेतु में विपक्षासत्त्व के सिवा बाकी के चार रुपो का आलंबन होने से वह केवलान्वयी हेतु है, वह इस अनुसार है - (१) पक्षधर्मत्व : प्रमेयत्व हेतु अदृष्टादि पक्ष में विद्यमान (मौजूद) है । (२) सपक्षसत्त्व : सपक्ष ऐसे करतल (हथेली) में प्रमेयत्व हेतु विद्यमान (मौजूद) है। (३) अबाधितविषयत्व : पक्ष (अदृष्टादि) में साध्याभाव (कस्यचित्प्रत्यक्षत्वाभाव) का निश्चय नहीं है। इसलिए बाध दोष नहीं है। (४) असत्प्रतिपक्षत्व : कस्यचित्प्रत्यक्षत्व के साधक प्रमेयत्व हेतु का कोई प्रतिपक्ष (विरोधी दूसरा) हेतु नहीं है, कि जो साध्याभाव को सिद्ध करे । इसलिए प्रमेयत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष नहीं है। (३) केवलव्यतिरेकी हेतु : सर्ववित्कर्तृपूर्वकं सर्वं कार्यं, कादाचित्कत्वात् - सर्वकार्यं सर्ववित्कर्तृपूर्वकं कादाचित्कत्वात् । (१०) (१) पक्षधर्मत्व : पक्ष में हेतु का होना (सत्त्व) वह पक्षधर्मत्व । (२) सपक्षसत्त्व : सपक्ष में हेतु का होना (सत्त्व) वह सपक्षसत्त्व। (३) विपक्षासत्त्वः विपक्ष में हेतु का न होना (असत्त्व) वह विपक्षासत्त्व । (४) अविरुद्धत्व (अबाधितविषयत्व) : जो हेतु का साध्यरुप विषय पक्ष में बाधित न हो अर्थात् पक्ष में साध्याभाव का निश्चय न हो, वह अबाधितविषयत्व । (५) असत्प्रतिपक्षत्व : साध्याभाव का साधक प्रतिपक्ष (दूसरा विरोधि) हेतु न हो वह असत्प्रतिपक्षत्व । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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