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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - १७, १८, १९, नैयायिक दर्शन,
उत्तर : पूर्ववत् आदि। जहाँ अनुमान में पहले कारण विद्यमान होता है, उसे पूर्ववत् कहा जाता है। अर्थात् जहाँ कारण के द्वारा कार्य का अनुमान किया जाये, उसे पूर्ववत् अनुमान कहा जाता है। जैसे कि, विशिष्ट मेघ (बादल की) उन्नति से वृष्टि (बारीश) होगी, ऐसा अनुमान किया जाये उसे पूर्ववत् अनुमान कहा जाता है।
यहाँ कारण शब्द से कारणधर्म ग्रहण करना है। उपरोक्त उदाहरण में (विशिष्टमेघ का) उन्नत्वादि धर्म ग्रहण करना चाहिए । प्रयोग इस अनुसार है - "अमी मेघा वृष्ट्युत्पादकाः गम्भीरगर्जितत्वेऽचिरप्रभावत्वे च सति उन्नतत्वात्, य एवं ते वृष्ट्युत्पादका यथा वृष्ट्युत्पादकपूर्वमेघास्तथा चामी तस्मात्तथा।" अर्थात् वृष्टि उत्पादक पूर्वमेघ की तरह (यह मेघ) गंभीर तरह से गर्जना करता होने से और अचिर प्रभाववाला होने से उन्नत होने के कारण वृष्टि का उत्पादक है।
यहाँ "अमी मेघा वृष्ट्युत्पादकाः" यह प्रतिज्ञावाक्य है। “गम्भीरगर्जितत्वेऽचिरप्रभावत्वे च सति उन्नतत्वात्" यह हेतुवाक्य है। “य एवं ते वृष्ट्युत्पादका यथा वृष्ट्युत्पादकपूर्वमेघाः ।" यह उदाहरण वाक्य है। ___ तथा चामी - यह उपनयवाक्य है। व्याप्ति से विशिष्ट पक्षसंबंध को बतानेवाले वचन को उपनयवाक्य कहा जाता है । तथा चामी = "(वृष्टि के उत्पादक पहले के मेघ की तरह) वृष्टि के उत्पादक का व्याप्य गंभीरगर्जना से युक्त और अचिरप्रभाव से युक्त अत्युन्नत यह मेघ है।" यह उपनयवाक्य है।
तस्मात् तथा - यह निगमनवाक्य है। पक्ष में साध्य के अबाधितत्व को बतानेवाले वचन को निगमनवाक्य कहा जाता है। तस्मात् तथा - "वृष्टि के उत्पादक का व्याप्य गंभीर गर्जना से युक्त तथा अचिर प्रभाव से युक्त अत्युन्नत मेघ है। इसलिए वह वृष्टि का उत्पादक है।" यह निगमनवाक्य है। (यह (११)पंचावयववाक्य से प्रयोज्य अनुमान परार्थानुमान कहा जाता है।)
(११) न्यायप्रयोज्यानुमानं परार्थानुमानम् । न्यायत्वं च प्रतिज्ञाद्यवयवपञ्चकसमुदायत्वं । अवयवत्वं च
प्रतिज्ञाद्यन्यतमत्वम् । प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनानि पञ्चावयवाः । साध्यविशिष्टं पक्षबोधकवचनं प्रतिज्ञा । पर्वतो वह्निमानिति प्रतिज्ञा । पञ्चम्यन्तं तृतीयान्तं वा लिङ्गवचनं हेतुः । धूमवत्त्वादिति हेतुः । व्याप्तिप्रतिपादकदृष्टान्तवचनमुदाहरणम् । यो यो धूमवान् स स वह्निमान् यथा महानसमित्युदाहरणम् । उदाहृतव्याप्तिविशिष्टत्वेन हेतोः पक्षधर्मताप्रतिपादकवचनमुपनयः । तथा चायमित्युपनयः । पक्षे साध्यस्याबाधितत्वप्रतिपादकवचनं निगमनम् । तस्मात्तथेति निगमनम्।
न्यायप्रयोज्य अनुमान को परार्थानुमान कहा जाता है। प्रतिज्ञा-हेतु आदि पाँच अवयव के समुदाय को न्याय कहा जाता है। प्रतिज्ञादि पंचान्यतमको अवयव कहा जाता है। वहाँ प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन ये पाँच अवयव है।
(१) प्रतिज्ञा : साध्यविशिष्ट पक्ष को बतानेवाला वचन को प्रतिज्ञा कहा जाता है । "पर्वतो वह्निमान्" यह वाक्य वह्निरुप साध्यविशिष्ट पर्वतरुप पक्ष को बतानेवाला है और पर्वत में साध्यरुप वह्नि रहा हुआ है। इसलिए वह्निरुपसाध्यविशिष्ट पर्वतरुप पक्ष है।
(२) हेतु : पञ्चम्यन्त अथवा तृतीयान्त लिंगवचन को हेतु कहा जाता है। पर्वतो वह्निमान्, धूमात् धूमेन वा।
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