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________________ षडदर्शन समुच्चय, भाग-१, संपादकीय • प्रस्तुत मूल-ग्रंथ में वेदांत दर्शन का प्रतिपादन नहीं किया गया हैं । उस वेदांतदर्शन के अनेक विषयो को एक परिशिष्ट में समावेश किया है । अद्वैत वेदांत को मुख्य रखकर निरुपण किया गया है। तदुपरांत वेदांत की विशिष्टाद्वैत, शुद्धाद्वैत, द्वैताद्वैत आदि अनेक शाखाओं की मान्यताओं का भी विवेचन किया गया है । वह विवेचन वेदांत दर्शन के स्वतंत्र-ग्रंथ (जिसकी नामावली परिशिष्ट के अंत में रखी गई है, वे ग्रंथ) के आधार पर प्रतिपादन किया गया हैं । यह परिशिष्ट का समावेश भाग-१ में किया है। • जैनदर्शन के श्री जैनाचार्य और श्री जैनमुनिप्रवरो ने आगम, अध्यात्म, ध्यान, दर्शन, न्याय, चरणकरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग, कर्म, योग आदि अनेक विषयो के उपर अनेक ग्रंथो का उपहार दिया है। जैनदर्शन का ग्रंथकलाप अति विस्तृत है । उसकी झांकी “जैनदर्शन का ग्रंथकलाप" परिशिष्ट में दी गई है । यह परिशिष्ट भाग-१ में संगृहित किया है। तदुपरांत वहाँ पर जैन साहित्य के बार में विशेष जिज्ञासु वर्ग के लिए दिशानिर्देश भी किया गया है । • प्रस्तुत षड्दर्शन - समुञ्चय ग्रंथ के उपर दो टीकायें उपलब्ध होती हैं । (१) तार्किकरत्न पू.आ.भ.श्री गुणरत्नसूरिजी म. कृत बृहद्वृत्ति और (२) पू.आ.भ.श्री सोमतिलकसूरिजी म. कृत लघुवृत्ति । इस ग्रंथ में बृहद्वृत्ति का भावानुवाद (हिन्दी व्याख्या) किया गया हैं । • टीकाकारश्रीने बृहद्वृत्ति में प्रतिपादित किये हुए पदार्थों के मूल आधारस्थानों के साक्षीपाठों को परिशिष्ट में संकलित किये हैं और वहाँ उसका उल्लेख टीका में A-1,A-2, A-3, B-1, B-2, B-3, C-1, C-2, C-3, D-1, D-2,E-1,E-2,F-1,F-2, 6-1, 6-2 आदि संज्ञापूर्वक किया हैं और टिप्पणी में वे संकेत स्थान दिये हैं । प्रथम भाग के साक्षीपाठ प्रथम भाग (परिशिष्ट-५) में और द्वितीय भाग के साक्षीपाठ द्वितीय भाग (परिशिष्ट७) में संकलित किये है । पहले साक्षीपाठ को दोनों भाग के प्रथम परिशिष्ट में रखने का इरादा रखा था और इसी अनुसार टीका (वृत्ति) की टिप्पणी में संकेत दिया था । ग्रंथसमाप्ति पर निर्णय बदल के दोनों भाग में अलग-अलग परिशिष्ट के रुप में संकलित किए है । अत: विषयानुक्रम के निर्देशानुसार उपयोग करने का परामर्श है। • प्रस्तुत ग्रंथ में प्रतिपादित सर्व दर्शनो के सिद्धांत, पारिभाषिक शब्दो की व्याख्यायें और तत्त्व आदि को “पारिभाषिक शब्दानुक्रमणी (सार्थ)" नाम के परिशिष्ट में संकलित किये गये हैं । वे व्याख्यायें प्रथम भाग की परिशिष्ट-६ में और द्वितीय भाग की परिशिष्ट-८ में संगृहित की गई है ।। • ग्रंथोपयोगी माहिती को "संकेत विवरणम्", "उद्धृतवाक्यानुक्रमणिका" और "मूलश्लोकानुक्रम" नाम के तीन परिशिष्ट में संगृहित की हैं। ये तीनों परिशिष्टों का दोनों भाग में संकलन किया गया हैं । • जैनदर्शन की टीका में जीवसिद्धि, षड्द्रव्यात्मक लोकसिद्धि, सर्वज्ञ सिद्धि, आत्मा का स्वरूप, मोक्ष का स्वरूप, पुद्गलसिद्धि, अंधकार-छाया आदि में पुद्गलरुपता की सिद्धि, शब्दादि की पुद्गलरूप सिद्धि, स्त्रीमुक्तिवाद, केवलीभुक्तिवाद, स्याद्वाद सिद्धि, वस्तु की द्रव्यत: आदि अनेक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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