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________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, संपादकीय (वसंतकुंज-अहमदाबाद) ने भी विभिन्न प्रकार से अनुमोदनीय सहायता की है और ग्रंथप्रकाशन का संपूर्ण लाभ भी अपने ट्रस्ट की ज्ञाननिधि में से प्राप्त किया है । * प्रस्तुत नूतन (हिन्दी) प्रकाशन में अनेक विषयो का अन्तर्भाव किया हैं - • प्रारंभ में विस्तृत भूमिका लिखकर दर्शनबोध की आवश्यकता, मोक्ष का स्वरूप, प्रत्येक दर्शन के देव, तत्त्व, प्रमाण, महत्त्व के सिद्धांत, प्रत्येक दर्शन के ग्रंथ-ग्रंथकार, प्रस्तुत ग्रंथ के ग्रंथकार-टीकाकार का परिचय, प्रत्येक दर्शन के स्थापक, लक्ष्यशुद्धि आदि अनेक विषयो का वर्णन किया गया हैं । • ग्रंथ की प्रत्येक पंक्ति का अर्थ सुव्यवस्थित और यथार्थ करने का प्रयत्न किया गया हैं । न्याय के दो विद्वान पंडितो ने भावानुवाद (हिन्दी व्याख्या) का संशोधन भी किया हैं । • बौद्धदर्शन और सांख्यदर्शन के निरुपणोत्तर इन दो दर्शन के विशेष पदार्थ, सिद्धांत, मान्यताओं की माहिती संगृहित की हैं । • नैयायिक दर्शन में पदार्थों की विशेष समज देने हेतु अन्य ग्रंथो के आधार पर टिप्पणी आदि में अधिक पदार्थों की संकलना की गई हैं । • जैनदर्शन के नव तत्त्वो की विशद समज देता "जैनदर्शन का विशेषार्थ" नाम का एक स्वतंत्र परिशिष्ट बनाया है और प्रथम भाग में "जैनदर्शन का कर्मवाद" नाम का एक परिशिष्ट समाविष्ट किया है, जिसमें जैनदर्शन के “कर्मवाद" के उपर विशेष प्रकाश डाला गया है । सुव्यवस्थित एवं तर्कबद्ध यथार्थ कर्म विषयक साहित्य जितना जैनदर्शन में मिलता है, उतना अन्य कोई दर्शन में मिलता नहीं हैं । • जैनदर्शन के स्याद्वाद सिद्धांत को सरल भाषा में समजाने के लिए एक अलग चेप्टर (प्रकरण) बनाया है तथा स्यादवाद सिद्धांत के स्तंभरूप नयवाद, सप्तभंगीवाद और निक्षेपयाजन इन तीनो विषयो की भी समज देता परिशिष्टों तैयार करके भाग-२ में संकलित किया गया हैं । • मीमांसक दर्शन की पदार्थ मीमांसा को एक अलग परिशिष्ट में संकलित की हैं । उसमें प्रमाण और प्रमेय, इन दो विषयो के उपर विशद विवरण किया गया है । इस आलेखन में मीमांसाचार्य श्री कुमारिल भट्ट को मान्य पदार्थो की विचारणा में अनेक मतो की समीक्षा की गई हैं, उसमें पूर्वपक्ष के रुप में प्रकाशित हुए अनेक ग्रंथकार - दर्शनकार के मत, व्याख्या, सिद्धांत आदि यहाँ एक ही स्थान पर उपलब्ध होते हैं । इसके कारण प्रमाण - प्रमेय विषयक तत्-तत् दर्शनों की अलग-अलग अनेक व्याख्यायेंमान्यतायें उसमें से जानने को मिलती हैं । (यह संकलन श्री नारायण भट्ट कृत “मानमेयोदय" ग्रंथ में से किया गया हैं ।) वह परिशिष्ट भाग-२ में संगृहित किया है । • सांख्य दर्शन के सन्निकट दर्शन के रुप में जिसकी गणना होती है, उस योगदर्शन के ईश्वर, योग, चित्तवृत्ति, अष्टांग योग आदि विषयो की माहिती को संकलित करके एक परिशिष्ट बनाकर भाग-१ में संगृहित किया हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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