________________
षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, संपादकीय
का यह ग्रंथ दार्शनिक जगत तक नूतन स्वरुप में पहुंचे और सर्व मुमुक्षुजन जैनदर्शन के स्याद्वाद सिद्धांत का-शैली का परिचय प्राप्त करके, तत्त्वो का यथार्थ योजन करके, मोक्षमार्ग के पथिक बनकर शीघ्रतया मुक्ति को प्राप्त करे । उपकार वर्षा :
प्रस्तुत प्रकाशन में... प्रथम से ही भवोदधितारक पूज्यपाद गुरुदेवश्रीजी की और परमोपकारी परम तपस्वी पूज्यपाद गुरुजी की महती कृपा संप्राप्त हुई हैं । तदुपरांत परमोपकारी प्रवचन प्रभावक पू.आ.भ.श्री.वि. कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा का अमूल्य मार्गदर्शन और मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुए हैं । तथा उनके शिष्यरत्नों की विविध प्रकार की सहायता और उसमें भी विद्वान पू. मुनिराज श्री रत्नयशविजयजी म.सा. की सहायता बारबार प्राप्त हुई हैं । परमोपकारी, सौजन्यमूर्ति, परम वेयावञ्ची पू.आ.भ.श्री. वि.हर्षवर्धनसूरीश्वरजी महाराजा का उपकार, आशीर्वाद और सहकार मेरे प्रत्येक कार्यो में सदा सर्वदा मिलता ही रहा है, श्रीमद् का ऋण किसी भी प्रकार से उतारा जा सके ऐसा नहीं हैं। पूज्यो की कृपा - आशीर्वाद - मार्गदर्शन से यह कार्य सहज-सरल बना हैं । सब का उपकार सदा के लिए मेरे स्मृतिपथ में जीवंत रहेगा । इसके अलावा अनेक पूज्यो ने सुझाव - मार्गदर्शन देकर उपकार किया है। सहायको को भी कैसे भूले ?
यह ग्रंथ अनेक महानुभावों की सहायता से शीघ्रतया परिपूर्ण हुआ है ।
प्रस्तुत ग्रंथ के दोनों भाग के बहोत सारे प्रूफ की शुद्धि, संस्कृत विभाग का संशोधन और संकलन के कार्य में सहायता पूज्यपाद तपागच्छाधिराजश्री के साम्राज्यवर्ती तपस्वी पू. साध्वीवर्या श्री सुनितयशाश्रीजी म.सा. के सुशिष्या विदुषी साध्वीवर्या श्री ज्ञानदर्शिताश्रीजी महाराज ने की हैं । निःस्वार्थ भाव से की गई उनकी श्रुतभक्ति की हार्दिक अनुमोदना ।
उपरांत, पांच वर्ष पूर्व गुजराती भावानुवाद ग्रंथ के संस्कृत-टीका विभाग की प्रुफ शुद्धि का कार्य तपागच्छाधिराजश्री के साम्राज्यवर्ती सा.श्री. चारुधर्माश्रीजी म. के शिष्या सा.श्री.विनीतधर्माश्रीजी म. ने की है । उनकी श्रुतभक्ति की भी अनुमोदना।
पं. श्री मेहुलभाई शास्त्री ने ग्रंथ संशोधन, दार्शनिक पुस्तक प्राप्त करा देना, चौखम्बा प्रकाशन के साथ मिटींग्स करना, ग्रंथ को दार्शनिक माहीति से समृद्ध बनाने के लिए सुझाव देना आदि अनेक कार्यो में
अपना अमूल्य समय एवं बुद्धि का भोग दिया हैं । ___ॉ. श्री विष्णुप्रसाद शास्त्री ने अनेक पठन-पाठन आदि कार्यों में व्यस्त होने पर भी ग्रंथ संशोधन करके प्रस्तुत ग्रंथ को परिशुद्ध बनाने के लिए बहोत सहकार दिया हैं ।
कु. जिज्ञासाबहन वृ. कटारिया (पडधरी)ने बहोत अल्प समय में प्रस्तुत ग्रंथ के मेटर का हिन्दी कर देके ग्रंथ को शीघ्र प्रकाशित करने में जो सहायता की हैं, उसे भी इस क्षण में भूल नहीं सकते । तदुपरांत, सन्मार्ग प्रकाशनने भी मुद्रणादि कार्यो में सहकार दिया है। इस कार्य में श्री रत्नत्रयी आराधना भवन ट्रस्ट
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org