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________________ १४० षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - १७, १८, १९, नैयायिक दर्शन टीकाका भावानुवाद : व्याख्या : प्रत्यक्ष का दूसरा नाम अध्यक्ष भी है। अनुमान का दूसरा नाम लैङ्गिक है। श्लोक में "च" और "तथा" शब्द समुच्चयार्थक है। उपमान अर्थात् उपमिति और शब्द द्वारा उत्पन्न (होता ज्ञान) शाब्दिकआगम कहा जाता है। ये चार प्रमाण है। अब प्रत्यक्ष का लक्षण बताते है। वहाँ चार प्रमाण में प्रथम प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जाता लौकिकविषयता मानी जाती है। उपर बताये अनुसार द्रव्यप्रत्यक्ष में चक्ष. त्वाच और मन ये तीन इन्द्रियाँ कारण है। बाकी की तीन इन्द्रियाँ द्रव्यग्राहक नहीं है। द्रव्य प्रत्यक्ष में चक्षसंयोग, त्वकसंयोग और मनसंयोग, ये ती सन्निकर्ष कारण है। सामान्यतः द्रव्यसमवेत द्रव्यत्वादि जाति, रुपादि गुण तथा क्रिया का प्रत्यक्ष पाँच इन्द्रिय से जन्य है। उसमें इन्द्रियसंयुक्त(द्रव्य)समवाय सन्निकर्ष कारण बनता है । घटादि द्रव्यसमवेत घटत्वादि जाति, रुपादि गुण अथवा गमनादिक्रिया का प्रत्यक्ष घटादिसमवेतवृत्ति लौकिकविषयतासंबंध से घटत्वादि जाति, रुपादि गुण अथवा क्रिया में रहता है। वहाँ चक्षु इत्यादिक इन्द्रियसंयुक्त घटादि में वृत्ति, घटत्वादि जाति, रुपादिगुण अथवा क्रिया का समवाय सन्निकर्ष, स्वरुपसंबंध से वृत्ति है। इस तरह से द्रव्यसमवेतगुणादि प्रत्यक्ष और उसके कारण इन्द्रियसंयुक्तसमवाय के कार्य कारणभाव पाँच है। द्रव्यसमवेतशब्द प्रत्यक्ष के लिए यह सन्निकर्ष कारण नहीं है। क्योंकि श्रवणेन्द्रिय आकाशस्वरुप होने से श्रवणेन्द्रियसंयुक्त घटादि में शब्द का समवाय नहीं है। इसी ही तरह से द्रव्यसमवेत (गुण-कर्म) समवेत (गुणत्व-कर्मत्वादि) जाति का प्रत्यक्ष भी श्रवणेन्द्रिय को छोडकर अन्य पाँच इन्द्रियो से जन्य है । उसमें चक्षु इत्यादिक इन्द्रियसंयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष कारण बनता है। घटादि द्रव्यसमवेत रुपादिसमवेत रुपत्वादि जाति का प्रत्यक्ष द्रव्यसमवेतसमवेतवृत्तिलौकिक विषयत्व संबंध से रुपत्वादिजाति में रहता है । वहां चक्षु इत्यादि इन्द्रियसंयुक्त(घटादि)समवेत(रुपादि)वृत्ति रुपत्वादि का समवाय, स्वरुप संबंध से वृत्ति है। इस तरह से द्रव्यसमवेतसमवेत रुपत्वादिप्रत्यक्ष और उसके कारण इन्द्रिय संयुक्तसमवेतसमवायसन्निकर्ष के पाँच कार्य-कारणभाव होते है। शब्द का प्रत्यक्ष श्रवणेन्द्रिय से ही होता है। श्रवणेन्द्रिय आकाशस्वरुप होने से शब्द के साथ श्रवणेन्द्रिय का समवाय संबंध है। शब्दवृत्तिलौकिकविषयता संबंध से शब्द का श्रावणप्रत्यक्ष शब्द में वृत्ति है। वहाँ श्रवणेन्ट्रिय वृत्ति शब्द का समवायसंबंध (सन्निकर्ष) स्वरुपसंबंध से वृत्ति है। इसी ही तरह से शब्दवृत्ति शब्दत्व, कत्व, खत्वादि जाति का प्रत्यक्ष भी श्रवणेन्द्रिय से ही होता है। उसमें समवेतसमवायसन्निकर्ष कारण बनता है। शब्दसमवेत (शब्दत्वादि) वृत्ति लौकिकविषयता संबंध से श्रावणप्रत्यक्ष शब्दत्वादिजाति में रहता है। वहाँ श्रवणेन्द्रिय समवेत शब्दवृत्ति शब्दत्व का समवाय स्वरुपसंबंध से वृत्ति है। अभाव प्रत्यक्ष के कारणभूत सन्निकर्ष का विचार करने से पहले अभाव का अधिकरण प्रत्यक्ष के लिए योग्य है या नहीं? अभाव का प्रतियोगी किसी भी स्थान पे प्रत्यक्ष का विषय बनता है या नहीं? जो इन्द्रिय से अभाव का प्रत्यक्ष करना है वह इन्द्रिय के लिए वह योग्य है या नहीं? इत्यादि का विचार करने के बाद ही अभाव के प्रत्यक्ष की योग्यतायोग्यता का विचार करना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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