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________________ बौद्धदर्शन का विशेषार्थ है। बीज आश्रय तो स्वयं आलयविज्ञान ही है। इस विज्ञान का विषय पाँचो इन्द्रियो के पाँच विज्ञान है। जिसको साधारणभाषा में धर्म कहा जाता है। मन के सहायको में मनस्कार, वेदना, संज्ञा, स्मृति, प्रज्ञा, श्रद्धा, राग-द्वेष, इर्ष्या आदि चैत्तिक धर्म है। मनका वैशेषिक कर्म नाना (भिन्न भिन्न) प्रकार के है । जिसमें विषय की कल्पना, विषय का चिन्तन, उन्माद, निद्रा, जागना, मूर्छित होना, कायिक-वाचिक कर्मो का करना, शरीर छोडना, शरीर में आना आदि है। क्लिष्टविज्ञान : यह विज्ञान और आलयविज्ञान दोनो विज्ञानवादि दार्शनिको सूक्ष्म मनस्तत्त्व के विवेचन का परिणाम है। सर्वास्तिवादियो को विज्ञान के भेद छः ही मान्य है। परन्तु योगाचारमतानुयायी पण्डितो ने दो नवीन विज्ञानो को जोड़कर विज्ञान की संख्या आठ मानी है। मनोविज्ञान तथा क्लिष्टविज्ञान, मनोविज्ञान का अभिन्न नाम धारण करते है। परन्तु उसके स्वरुप तथा कार्य में पर्याप्त विभिन्नता है। "मनोविज्ञान" मननकी साधारण प्रक्रिया का निर्वाहक है । पाँच इन्द्रिय विज्ञानो के द्वारा जो विचार अर्थात् प्रत्यय उसके सामने उपस्थित किया जाता है उसका वह मनन करता है। परन्तु वह भेद नहीं कर सकता कि कौन से प्रत्यय आत्मा के साथ संबंध रखते है। और कौन से प्रत्यय अनात्मा के साथ संबंध रखते है। परिच्छेद (विवेचन) का यह समग्रव्यापार सातवें विज्ञान (क्लिष्टविज्ञान) का अपना विशिष्ट कार्य है। यह विज्ञान हमेशा इस कार्य में व्याप्त रहता है। प्राणी निद्रित हो अथवा कोई कारण से चेतनाहीन हो तो भी यह सातवां विज्ञान सदा कार्य में व्याप्त रहता है। मनोविज्ञान सांख्यो के अहंकार का ही प्रतिनिधि है। (अर्थात सांख्योने मनोविज्ञान को ही अहंकार माना है।) आठवे विज्ञान (आलय) के साथ ऐसे प्रकार से ये सम्बद्ध होते है कि, जिस प्रकार से एन्जीन के साथ उसके अलग-अलग अवयव । मनोविज्ञान का विषय आलयविज्ञान का स्वरुप है। मनोविज्ञान अपनी भ्रान्त कल्पना के सहारे आलय विज्ञान को अपरिवर्तनशील जीव समज बैठता है । आलयविज्ञान सतत परिवर्तनशील होने से जीव से भिन्न है। परन्तु अहंकारयुक्त यह सातवां विज्ञान उसको आत्मा मानने के लिये आग्रह करता है और उनके सहायको में नीचे लीखे हुए चैत्तसिक धर्मो की गणना की जाती है। ५ साधारण चित्तधर्म, प्रज्ञा, लोभ, मोह, मान, सम्यग्दृष्टि, स्त्यान, औद्धत्य, कौसीद्य (आलस्य), मुषितस्मृति (विस्मरण), असंप्रज्ञा (अज्ञान) तथा विक्षेप। मनोविज्ञान की प्रधानवृत्ति उपेक्षा की होती है। उपेक्षा का अर्थ है कि, न कुशल - न अकुशल = तटस्थता की वृत्ति । उपेक्षा दो प्रकार की है । (१) आवृत्त उपेक्षा, (२) अनावृत्त उपेक्षा । आवृत्त उपेक्षा की प्रधानता क्लिष्ट विज्ञान में रहती है और वह अहंकारद्योतक तत्त्व होने से निर्वाण का अवरोध करनेवाली है। मनोविज्ञान से पार्थक्य (अलगता) बताने के लिए इसको क्लिष्ट (क्लेशो से युक्त) मनोविज्ञान की संज्ञा दी गई है। विज्ञान का यह द्वितीय परिणाम माना जाता है। (८) आलयविज्ञान : योगाचारमत में आलयविज्ञान की कल्पना का महत्त्व ज्यादा है । (अन्य दर्शनकारो ने विज्ञानवादियो के इस सिद्धान्त के उपर बहोत आक्षेप किये है।) जगत के सर्वधर्मो का बीज आलयविज्ञान में निहित रहता है, उत्पन्न होता है और पुनः विलीन हो जाता है। विज्ञान को 'आलय' शब्द द्वारा अभिहित करने के (आचार्य स्थिरमति अनुसार ) तीन कारण है । (तत्र सर्वसांक्लेशिकधर्मबीजस्थानत्वाद् आलयः। आलयः स्थानमिति पर्यायौ । अथवा आलीयन्ते उपनिबध्यन्तेऽस्मिन् सर्वधर्माः कार्यभावेन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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