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________________ बौद्धदर्शन का विशेषार्थ चैत्तसिक तथा (४) चित्तविप्रयुक्त, (ये चार भेद योगाचार को भी मान्य है, परन्तु स्थविरवादियो को अंतिम प्रभेद (चित्तविप्रयुक्त) मान्य नहीं है।) तुलनात्मक वर्गीकरण धर्म स्थविरवादि सर्वास्तिवादि योगाचार असंस्कृत रुप स X ७५ १०० चित्त चैत्तसिक चित्तविप्रयुक्त २४ १७० ★ वैभाषिको के मतानुसार संस्कृत धर्मो के ७५ भेदो का वर्णन :(१) रुप - ११ प्रकार से है। (१) चक्षुरिन्द्रिय, (२) श्रोत्रेन्द्रिय, (३) घ्राणेन्द्रिय, (४) रसनेन्द्रिय, (५) कायइन्द्रिय, (६) रुप, (७) शब्द, (८) गंध, (९) रस, (१०) स्पष्टव्य विषय, (११) अविज्ञप्ति । रुप का अर्थ साधारण भाषा में भूत है । रुप की व्युत्पत्ति है 'रुप्यते इति रुपम्' । जो धर्म रुप धारण करता है वह रुप का लक्षण अप्रतिघत्व है। प्रतिघ अर्थात् रोकना । बौद्धधर्मानुसार रुपधर्म एक समय में जो स्थान को ग्रहण करता है, वह स्थान दूसरो के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता। पांच इन्द्रिय : वैभाषिक (सर्वास्तिवादि) यथार्थवादि दर्शन है। अर्थात् हमारी इन्द्रियो के द्वारा बाह्य जगत का जो स्वरुप प्रतीत होता है उसको वे सत्य और यथार्थ मानते है । वे परमाणुओकी सत्ता मानते है। विषय परमाणु का पुञ्जरुप नहीं है। प्रत्युत इन्द्रियाँ भी परमाणुजन्य है। जिसको हम साधारणतया नेत्र नाम से पहचानते है। वह वस्तुतः चक्षुरिन्द्रिय नहीं है। चक्षु वस्तुतः अतीन्द्रिय पदार्थ है। जिसकी सत्ता भौतिकनेत्र में विद्यमान है। नेत्र अनेक परमाणुओका पूञ्ज है। उसमें चारमहाभूत (पृथ्वी, अप, तेज, वायु) और चार इन्द्रिय ग्राह्य (शब्द के ) विषयो के परमाण विद्यमान ही होते है। साथ ही उसमें कायेन्द्रिय तथा चक्षुरिन्द्रिय के परमाणुओ का भी अस्तित्व होता है। इस प्रकार से नेत्र, परमाणुओ का संघात है। श्रोत्रेन्द्रिय, जैसे पैड़ के छिलके को उतार लिया जाये तो अपनेआप छिलका वापस आ जाता है, वैसे ही वे परमाणु कि जिससे श्रोत्र बनी है, वे निरंतर वापस आ जाते है। घ्राणेन्द्रिय के परमाणु नाक के अन्दर रहते है। रसनेन्द्रिय के परमाणु जिह्वा (जीभ)के उपर रहते है और उसका आकार अर्धचन्द्र जैसा है। काय (स्पर्श) इन्द्रिय के परमाणु समस्त शरीर में फैले हुओ है। शरीर में जितने परमाणु होते है, उतने ही कायेन्द्रिय के परमाणु की संख्या रहती है। इस प्रकार रुप के ११ प्रकार में से पांच कहे गये। (६) रुप : चक्षु का विषय रुप है। जो प्रधानतया दो प्रकार का है। (१) वर्ण (रंग), (२) संस्थान (आकृति) ★ वर्ण बारह प्रकार के है : नील, पित्त, लोहित, अवदात (शुभ्र) यह चार प्रधानवर्ण है तथा मेघ (मेघ-बादल का रंग) धूम, रज, महिका (पृथ्वी या जल से नीकलनेवाले नीहार का रंग,) छाया, आतप (सूर्य की चमक), आलोक (चन्द्रमा का शीतप्रकाश,) अंधकार, यह आठ अप्रधानवर्ण है। ★ संस्थान आठ प्रकार का है : दीर्घ, हुस्व, वर्तुल (गोल), परिमण्डल, (सूक्ष्म गोल), उन्नत, अवनत, शात (समाकार), विशात (विषम आकार) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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