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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ७, बोद्धदर्शन अथ प्रस्तुतं प्रस्तूयते-क्षणिकाः सर्वसंस्कारा इत्यत्रेतिशब्दात्प्रकारार्थात् नास्त्यात्मा कश्चन, किंतु ज्ञानक्षणसंताना एव सन्तीत्यादिकमप्यत्र गृह्यते । ततोऽयमर्थः क्षणिकाः सर्वे पदार्थाः, नास्त्यात्मेत्याद्याकारा, एवमीदृशी यका 'स्वार्थे कप्रत्यये' या वासना पूर्वज्ञानजनिता तदुत्तरज्ञाने शक्तिः क्षणपरंपराप्राप्ता मानसी प्रतीतिरित्यर्थः । स मार्गो नामार्यसत्यं, इह बौद्धमते विज्ञेयोऽवगन्तव्यः । सर्वपदार्थक्षणिकत्वनैरात्म्याद्याकारश्चित्तविशेषो मार्ग इत्यर्थः । स च निरोधस्य कारणं द्रष्टव्यः । अथ चतुर्थमार्यसत्यमाह । निरोधो निरोधनामकं तत्त्वं, मोक्षोऽपवर्ग उच्यतेऽभिधीयते । चित्तस्य निःक्लेशावस्थारूपो निरोधो मुक्तिर्निगद्यत इत्यर्थः । एतानि दुःखादीन्यार्यसत्यानि चत्वारि यानि ग्रन्थकृतात्रानन्तरमेवोक्तानि तानि सौत्रान्तिकमतेनैवेति विज्ञेयम् ।। ७ ।। टीकाका भावानुवाद : अब प्रस्तुत श्लोक की व्याख्या की जाती है। "क्षणिका सर्वसंस्कारा इति" यहां “इति" शब्द प्रकारवाचि है। इससे "कोई आत्मा नहीं है, परन्तु ज्ञानक्षण संतान ही है।" अर्थात् आत्मा कोई स्वतंत्र तत्त्व नहीं है, परंतु पूर्वापरज्ञान के प्रवाह स्वरुप संतान ही है। इत्यादि प्रकारो का भी संग्रह हो जाता है। इसलिए श्लोक का फलितार्थ यह है कि "सब पदार्थ क्षणिक है, आत्मा नहीं है।" इत्यादि प्रकार की जो वासना है कि जिसको बौद्धमत में "मार्ग" नाम का आर्यसत्य कहते है। प्रश्न : वासना क्या है ? उत्तर : पूर्वज्ञान से उत्पन्न होनेवाले उत्तरज्ञान में, पूर्वज्ञान की क्षणपरंपरा की जो शक्ति प्राप्त होती है, उसे वासना या मानसिक प्रतीति कहते है और उस वासना को बौद्धमत में मार्ग नाम का आर्यसत्य कहा जाता है। कहने का भावार्थ यह है कि.... "सब पदार्थो को क्षणिक मानने स्वरुप तथा नैरात्म्यादि का (आत्मा नहीं है एसा) स्वीकार करने स्वरुप आकारवाले चित्त विशेष को मार्ग कहा जाता है। वह मार्ग आर्यसत्य निरोध का कारण है। अब चौथा आर्यसत्य कहते है- निरोध नामके तत्त्व को मोक्ष-अपवर्ग कहा जाता है। अर्थात् चित्त की निक्लेश अवस्थास्वरुप निरोध को मुक्ति कहते है। जो ये दुःखादि चार आर्यसत्य, ग्रंथकारश्री के द्वारा कहे गये वह (बौद्ध के चार भेद में से) सौत्रान्तिक मत की अपेक्षा से कहे गये है, ऐसा जानना । ॥७॥ वैभाषिकादिभेदनिर्देशं विना सामान्यतो बौद्धमतेन तु द्वादशैव ये पदार्था भवन्ति तानपि संप्रति विवक्षुः श्लोकमेनमाह (३५)वैभाषिकादि उत्तर भेदो के निर्देश बिना सामान्य से बौद्धदर्शन द्वारा (माने गये) जो बारह पदार्थ है, वे बारह पदार्थ कहने की इच्छावाले ग्रंथकारश्री इस श्लोकको कहते है। (३५) बौद्धो के चार निकायोका स्वरुप बौद्धदर्शननिरुपणोत्तर दीए गए विशेषार्थ में देखना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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