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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ८, बोद्धदर्शन
(मू. श्लो.) पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषयाः पञ्च मानसम् ।
धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि A-8 च ।। ८ ।। श्लोकार्थ : श्रोत्रादि पाँच इन्द्रिय, शब्दादि पाँच विषय, मन और सुखादि धर्मो का आयतन (अतीन्द्रियविषय) ये बारह "आयतन" है।
व्याख्या-पञ्चसंख्यानीन्द्रियाणि श्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पर्शन(A) रुपाणि । शब्दाद्याः शब्दरुपरसगन्धस्पर्शा पञ्च विषया इन्द्रियगोचराः । मानसं चित्तं यस्य शब्दायतनमिति नामान्तरम् । धर्माः सुखदुःखादयस्तेषामायतनं गृहं शरीरमित्यर्थः । एतान्यनन्तरोक्तानि द्वादशसंख्यान्यायतनान्यायतनसंज्ञानि तत्त्वानि, चः समुञ्चये, न केवलं प्रागुक्तानि चत्वारि दुःखादीन्येव, किं त्वेतानि द्वादशायतनानि च भवन्ति । एतानि चायतनानि क्षणिकानि ज्ञातव्यानि । यतो बौद्धा अत्रैवमभिदधते । अर्थक्रियालक्षणं सत्त्वं प्रागुक्तन्यायेनाक्षणिकान्निवर्तमानं क्षणिकेष्वेवावतिष्ठते । तथा च सति सुलभं क्षणिकत्वानुमान1-87, यत्सत्तत्क्षणिकं, यथा प्रदीपकलिकादि । सन्ति च द्वादशायतनानीति । अनेन चानुमानेन द्वादशायतनव्यतिरिक्तस्यापरस्यार्थस्याभावात्, द्वादशस्वायतनेष्वेव क्षणिकत्वं व्यवस्थितं भवतीति । तदेवं सौत्रान्तिकमतेन चत्वारि दुःखादीनि तत्त्वानि ।
टीकाका भावानुवाद :
व्याख्या : श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय, ये पाँच इन्द्रियाँ है । शब्द, रुप, रस, गंध और स्पर्श, ये पाँच इन्द्रियो के विषय है। मन कि जिसका दूसरा नाम शब्दायतन है। सुखादि धर्मो का आयतन = गृह शरीर है। यह नजदीक में कहे गये बारह आयतन है। श्लोक में सूचित "च" समुच्चयार्थक है। कहने का मतलब यह है कि केवल पहले कहे गये दुःखादि चार आर्यसत्य ही तत्त्व नहीं है, परन्तु बारह आयतन भी तत्त्व है। तथा ये आयतनो को क्षणिक जानना, क्योंकि बोद्धो ने इस विषय में इस अनुसार कहा है कि ("यदेवार्थक्रियाकारि तदेव परमार्थसदिति" अर्थात् जो अर्थक्रियाकारि है, वह परमार्थसत् है। यह वचनानुसार बारह आयतनो में भी अर्थक्रियाकारित्व है, इसलिए बारह आयतन भी परमार्थ से सत् है।) और "यत् सत् तत् क्षणिकम्" यह पहले कहे गये न्याय से बारह आयतनो में से अक्षणिकत्व निवर्तमान होने से क्षणिकत्व ही आकर खडा रहता है। (कहने का मतलब यह है कि, पहले कहा है कि जो अर्थक्रियाकारि हो, वह सत् है और जो सत् हो वह क्षणिक होता है। इसलिये बारह आयतनो में अर्थक्रियाकारित्व होने से सत् तो है ही । और अक्षणिक में क्रम से या युगपद् से अर्थक्रिया नहीं बनती। इसलिए बारह आयतनो में अर्थक्रियाकारित्व का स्वीकार करने से, उसे क्षणिक भी स्वीकार करना (A) "आयतनानीति द्वादशायतनानि - चकखायतनं, रुपायतनं, सोतायतनं, सदायतनं, घानायतनं, गन्धायतनं, रसायतनं,
कायायतनं, फोट्टव्वायतं, मनायतनं धम्मायतनं ति ।” [वि, मृ. पृ. ३३४] (?)
(A-86-87) - तु० पा० प्र० प० ।
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