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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - ६, बौद्धदर्शन
करनेवाला अविसंवादि दूसरा प्रमाण नहीं है । उपरांत वे पांच उपादान स्कन्ध क्षणमात्र रहनेवाले ही जानना, परन्तु नित्य नहीं है । ये सर्वसंस्कार क्षणिक है वह आगे बताया जायेगा । ॥५॥ दुःखतत्त्वं पञ्चभेदतयाभिधायाथ दुःखतत्त्वस्य कारणभूतं समुदयतत्त्वं व्याख्यातिदुःखतत्त्व को पांच भेद से कहकर अब दुःखतत्त्व के कारणभूत "समुदय" तत्त्व की व्याख्या की जाती है.. (मूल श्लो०) समुदेति यतो लोके रागादीनां गणोऽखिलः ।
B-3आत्मात्मीयभावाख्यः B - समुदयः स उदाहृतः । । ६ ।।
श्लोकार्थ : जिस कारण से जगत में "मैं हूँ" और "यह मेरा है" इत्यादि आत्मा-आत्मीयभाव स्वरुप (अहंकारस्वरुप) रागादिभावो का (२३) समुदाय उत्पन्न होता है, उसे समुदय कहा जाता है।
यतो यस्मात्समुदयाल्लोके लोकमध्ये रागादीनां रागद्वेषादिदोषाणां गणः समवायोऽखिलः समस्तः समुदेति समुद्भवति । कीदृशो गण इत्याह । आत्मात्मीयभावाख्यः । आत्मा स्वं, आत्मीयः स्वकीयः, तयोर्भावस्तत्त्वम् । आत्मात्मीयभावः अयमात्मा अयं चात्मीय इत्येवं संबन्ध इत्यर्थः । उपलक्षणत्वादयं (३३) समुदय अर्थात् कारण । विषमदुःख का कोई एक कारण नहीं है । परन्तु कारणो की सब शृंखला है । उस शृंखला का नाम द्वादश निदान है । वह इस अनुसार है (१) जरा-मरण, (२) जाति, (३) भव, (४) उपादान, (५) तृष्णा, (६) वेदना, (७) स्पर्श, (८) षडायतन, (९) नामरुप, (१०) विज्ञान, (११) संस्कार, (१२) अविद्या ।
अविद्या दुःखो का मुख्य (मूल) कारण है। क्योंकि समुदायशृंखला को भी वही पैदा करती है और टिकाती है।
अविद्या अर्थात् अज्ञान, अज्ञान पूर्वजन्म के कर्म और अनुभव से उत्पन्न संस्कार का कारण है। अर्थात् अविद्या "संस्कार" को जन्म देती है । संस्कार विज्ञान को जन्म देता है। विज्ञान के कारण गर्भ में भ्रूण को नामरुप मिलता है। नामरुप अर्थात् शरीर और मन द्वारा बनता संस्थान । नामरुप से षडायतन पैदा होते है। पांच इन्द्रिय और मन यह षडायतन है । इन्द्रिय और मन द्वारा विषय का संपर्क होता है। उसे स्पर्श कहते है । स्पर्श = इन्द्रिय विषय के सम्पर्क से सुख, दुःख या उदासीनता की अनुभूति होती है, वह वेदना है । वेदना से तृष्णा पेदा होती है । तृष्णा=इच्छा. तृष्णा से उपादान पैदा होता है। उपादान अर्थात् आसक्ति । आसक्ति से पुनर्जन्म उत्पन्न करनेवाला कर्म 'भव' उत्पन्न होता है । भव से जन्म और जन्म से जरा-मरण की उत्पत्ति होती है
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इस प्रकार यह द्वादशनिदान दुःख का कारण बनता है । द्वादशनिदान के प्रत्येक अंग परस्पर कार्य-कारणभाव से जुडे हु है और भवचक्र का कारण है । भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनो भव इस कारणशृंखला के साथ संबंधित है। अविद्या और संस्कार, ये दो निदान अतीतभव के साथ संबद्ध है। विज्ञान, नामरुप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान और भव, ये आठ (निदान) वर्तमानभव के साथ संबद्ध है। जाति और जरामरण, ये दो निदान भविष्य जन्म के साथ संबद्ध है ।
द्वादशनिदान की इस प्रक्रिया को प्रतीत्यसमुत्पाद के नाम से भी पहचाना जाता है। जो बौद्धो का मूल सिद्धांत कहा जाता है । प्रतीत्य = अन्य के आधार से उत्पाद उत्पत्ति अर्थात् सापेक्ष कारणतावाद ।
(B-3) - तु० पा० प्र० प० ।
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