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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक -१
जातिजरामरणादिकं लोके काकतालीयाभमिति । तथा च स्वतः षड्विकल्पा लब्धास्तथा नास्ति परतः कालत इत्येवमपि षड्विकल्पा लभ्यन्ते । सर्वेऽपि मिलिता द्वादश विकल्पा जीवपदेन लब्धाः । एवमजीवादिष्वपि षट्सु पदार्थेषु प्रत्येकं द्वादश द्वादश विकल्पा लभ्यन्ते । ततो द्वादशभिः सप्त गुणिताश्चतुरशीतिर्भवन्त्यक्रियावादिनां विकल्पाः ।
टीकाका भावानुवाद : तथा प्रतिक्षण अवस्थित (रहनेवाले) पदार्थ की (अस्तित्व रुप) क्रिया संभवित नहीं होती। क्योंकि, "उत्पत्ति की अनन्तर विनाश होता है।" ऐसा कहनेवाले अक्रियावादि है - अर्थात् आत्मादि के अस्तित्व का स्वीकार नहीं करते है वह अक्रियावादि । वे अक्रियावादि कोक्रुल, कांठेवि, द्विरोमक, सुगत (बौद्ध) इत्यादि है। तथा एकने कहा (भी) है कि
"सर्व संस्कार क्षणिक है (तो) अस्थिर पदार्थो में क्रिया कहां से होगी ? (इसलिये वह पदार्थो की) भूतिः = उत्पत्ति (अर्थात् एक क्षणस्थायी सत्ता वही) क्रिया है और वही कारण है।"
अक्रियावादियों की ८४ संख्या है। वह संख्या इस उपाय से जाननी चाहिये । पुण्य और पाप के सिवा शेष जीवादि सात पदार्थो को एक पट्टी में न्यास करना । (सम्यग् (व्यवस्थित) रुप में रखना) प्रत्येक के नीचे स्वतः और परतः दो विकल्प ग्रहण करना । (यहाँ अक्रियावादि आत्मा के अस्तित्व का स्वीकार नहीं करते इसलिए) आत्मा का सत्त्व न होने से (आत्मा विषयक) नित्य और अनित्य विकल्प नहीं है।
पहले कहे गये कालादि पांच में छठ्ठी यदृच्छा रखना। यहां सर्व भी यदृच्छावादि अक्रियावादि होने से पहले उसका उपन्यास नहीं किया था। ___ इसलिये इस प्रकार विकल्प कहना - "नास्ति जीवः स्वतः कालतः।" यह एक विकल्प है। कहने का मतलब यह है कि यहाँ पदार्थो की सत्ता का लक्षण से या कार्य से निश्चय होता है। (परन्तु) आत्मा का उस प्रकारका कोई लक्षण नहीं है कि जिससे हम लक्षण से आत्मा की सत्ता का स्वीकार करें । उपरांत, अणुओ का कार्य जिस प्रकार पर्वतादि संभव है। उस प्रकार (आत्मा में से कोई कार्य संभव न होने से) आत्मा की कार्य से भी सत्ता सिद्ध नहीं होती। इसलिए आत्मा नहीं है। इस अनुसार ईश्वरवादियों के द्वारा भी यदृच्छा तक के विकल्प कहने चाहिये । वे सब भी मिलके छः विकल्प होते है। ये विकल्पो का अर्थ पहले की तरह सोच लेना। बिना संकल्प अर्थ की प्राप्ति होना वह यदृच्छा कहा जाता है। अथवा बिना सोचे वस्तु उपस्थित होना वह यदृच्छा कहा जाता है। प्रश्न : वे यदृच्छावादि कौन है ? उत्तर : जो पदार्थो में संतान (परंपरा)की अपेक्षा से प्रतिनियत कार्य-कारणभाव को नहीं चाहते, परन्तु
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