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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - १ टीकाका भावानुवाद : कोई अन्य व्यक्ति शङ्का करती है । शंका : जिन को सत्यासत्य विभाग को बतानेवाले ग्रंथकार श्री के वचनो के ऊपर विश्वास नहीं है, उनको यह सब कहने से क्या? (अर्थात् ग्रंथकार श्री जैनदर्शन की मान्यतावाले है। इसलिए जैनदर्शन को सत्य बताते है और अन्य दर्शनो के मतो को असत्य बताते है, ऐसी मन में अश्रद्धा है, ऐसे व्यक्तिओको विशेषणो द्वारा अन्यदर्शन की असत्यता बताने से क्या ? समाधान : जिन को ग्रंथकारश्री के वचनो के ऊपर श्रद्धा नहीं है, वे दो प्रकार के हो सकते है, (१) रागद्वेष का अभाव होने से मध्यस्थचित्तवाले और (२) रागद्वेषादि दोषो से कलुषित चित्तवाले होने के कारण दुःख से बोध कराया जा सके ऐसे। __ (उनमें से) जो दुर्बोध चित्तवाले है, उनको सर्वज्ञ परमात्मा के द्वारा भी सत्यासत्यविभाग की प्रतीति करानी संभवित नहीं है, तो (सर्वज्ञ के सिवा) दूसरो के द्वारा किस प्रकार की जा सकेगी? इसलिए दुर्बोधचित्तवालों की उपेक्षा करके मध्यस्थ चित्तवालो को उद्देश में रखकर विशेषण की आवृत्ति से सत्यासत्य मत के विभाग के ज्ञानका उपाय कहते है। वीरं कथंभूतम् ? सद्दर्शनं (यहां "सद्दर्शन" पद की अलग प्रकार से व्युत्पत्ति करके मध्यस्थचित्तवालो को सत्यासत्य मत के विभाग के ज्ञान के प्रति अभिमुख करता है।) सत् अर्थात् सज्जन, साधु, मध्यस्थचित्तवाले । वे मध्यस्थ चित्तवालो को सत्यासत्य मत के विभाग का ज्ञान (दर्शन) यथावद् आप्तत्व की परीक्षा में समर्थ होने के कारण ही श्री वीर परमात्मा के पास से होता है, वह सद्दर्शन । इस से मध्यचित्तवालो को श्रीवीर परमात्मा में यथावद् आप्तत्व की परीक्षा करने योग्य है, ऐसा सूचन किया। (यदि श्रीवीर परमात्मा में आप्तत्व की सिद्धि हो जाये तो उनका वचन सत्य ही होगा, वह स्वयमेव सिद्ध हो ही जाता है, इसलिए आप्तत्व की परीक्षा करने का सूचन किया) अथवा साधुओ को तत्त्वार्थ की श्रद्धा स्वरुप दर्शन (सम्यग्दर्शन) जिससे हो वह सद्दर्शन । अथवा विद्यमान ऐसे जीवाजीवादि पदार्थो का यथावद् अवलोकन = दर्शन, जो वीर परमात्मा से होता है वह सद्दर्शन । (वह सद्दर्शन को नमस्कार करके उस प्रकार अन्वय करना ।) प्रश्न : श्रीवीर परमात्मा कैसे जीवादि तत्त्वो का यथावद् अवलोकन करानेवाला है ? उत्तर : श्रीवीर परमात्मा पहले कहे अनुसार स्याद्वाद के देशक होने से यथावद् जीवादि तत्त्वो का अवलोकन करानेवाले है। प्रश्न : श्रीवीर परमात्मा स्याद्वाद के देशक कैसे है ? उत्तर : श्रीवीर परमात्मा स्याद्वाद के देशक हैं । क्योंकि वे राग-द्वेष के विजेता जिन है । जिन, वीतराग होने के कारण असत्य नहीं बोलते है। क्योंकि असत्य बोलने के कारणो का अभाव है। अर्थात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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