SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, विस्तृत विषयानुक्रम (७४) (७५) क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं. | क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं.. ४६९ वेदांत दर्शन की आंशिक रुपरेखा (६७) ९७२ | ४९४ काम यही परम धर्म (८६) १००८ ४७०मीमांसकदर्शन में देव का अभाव (६८) ९७३ | ४९५ चार्वाकमत का उपसंहार (८७) १००९ ४७१ अतीन्द्रियपदार्थो का ज्ञान वेदवाक्य से(६९) ९७६ | भाग-२, परिशिष्ट विभाग ४७२ वेदवाक्य की दृढता-वेद पाठ के परिशिष्ट-१ - जैनदर्शन का विशेषार्थ उपर भार (७०) ९७८ | |४९६ जैनदर्शन का विशेषार्थः १०१२ ४७३धर्म का लक्षण (७१) ९७८ ४९७ जीव के चौदह प्रकार और उसका स्वरुप १०१२ ४७४प्रमाण का सामान्य लक्षण |४९८ जीव के लक्षण ४७५ प्रमाण की संख्या ___ ज्ञान-दर्शन-चरित्र-तप-वीर्य-उपयोग १०१३ ४७६प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण |४९९ संसारी जीवो की पर्याप्तियाँ १०१६ ४७७अनुमान प्रमाण का लक्षण (७४) ९८ | ५०० पर्याप्ति के ४ भेद १०१६ ४७८ शाब्द-उपमान प्रमाण का लक्षण । | ५०१ १० प्राण १०१८ ४७९ अर्थापत्ति प्रमाण का लक्षण ५०२ अजीव के चौदह भेद १०१९ ४८० अभाव प्रमाण का स्वरुप (७६) | ५०३ पांच अजीव और उसके स्वभाव १०२१ १०२२ ४८१ अभाव प्रमाण के तीन रुप |५०४ द्रव्यो में द्रव्यादि छ संख्या मागणा (७६) १०२२ ४८२ अभाव के चार प्रकार ५०५ पुद्गल के शब्दादि परिणाम (७६) १०२३ ५०६ शब्द-अंधकार आदि की पुद्गल रुपता ४८३ मूलग्रंथकार के द्वारा नहीं कहा ५०७ पुद्गल के स्वाभाविक और गया कुछ विशेष (७६) वैभाविक परिणाम १०२४ ४८४मीमांसक मत का उपसंहार (७७) १ |५०८ काल का स्वरुप १०२४ ४८५ मतांतर से पांच आस्तिकदर्शन (७८) ९९७ |५०९ काल का विशेष स्वरुप १०२४ ४८६मतांतर से छ: दर्शन - व्यवहारकाल ____ लोकायत दर्शन - निश्चयकाल १०२४ ४८७नास्तिक का स्वरूप (७९) ९९८ | ५१० छः द्रव्यो का विशेष विचार १०२७ ४८८ नास्तिक मत में जीवादि का निषेध (८०) ९९९ | ५११ पुण्य तत्त्व १०२८ ४८९ प्रत्यक्ष विषय ही वस्तु (८१) १००० | ५१२ पुण्य के ४२ प्रकार १०२९ ४९० परोक्ष के विषय में स्त्री को ५१३ पाप तत्त्व और उसके ८२ भेद पति का उपदेश (८२) १००४ | ५१४ आश्रव तत्त्व और उसके ४२ प्रकार १०३३ ४९१ प्रमेय और प्रमाण (८३) १००५ | ५१५ पाँच - इन्द्रियाँ १०३३ ४९२ चारभूत से देह की उत्पत्ति-देह ५१६ चार कषाय में चैतन्य की उत्पत्ति (८४) १००६ | ५१७ पाँच अव्रत १०३३ ४९३ परोक्ष अर्थ में प्रवृत्ति का निषेध (८५) १००८ |५१८ २५ क्रिया १०३४ १०२४ १०३१ १०३३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy