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________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, विस्तृत विषयानुक्रम १०१ क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं. ] क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं.. ४२३ द्रव्यतः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८२६ | ४४७सांख्यो तथा मीमांसको के द्वारा ४२४ क्षेत्रत: घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८२८ स्वीकृत अनेकांत का प्रकाशन (५७) ८९१ ४२५ कालत: घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८२९ / ४४८अनेकांत की सिद्धि के लिए बौद्धादि ४२६ भावतः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३१ | सर्वदर्शनो के संमतदृष्टांत और ४२७ शब्दत: घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३२ | युक्तियाँ (५७) ८९३ ४२८ संख्यातः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३२ | ४४९हेतुतमोभास्कर नाम का वाद स्थल (५७) ८९७ ४२९ परिमाणत: घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३३ | ४५० जैनदर्शन का उपसंहार तथा जैनदर्शन ४३० दिग्-देशतः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५)८३३ में पूर्वापर के विरोध का अभाव (५८) ९१९ ४३१ ज्ञानतः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३४ | ४५१ बौद्धमत के वचनो में पूर्वापर का विरोध (५८)९२१ ४३२ सामान्यतः घट की अनंतधर्मात्मकता (५५) ८३५ | ४५२ नैयायिक और वैशेषिकमत में ४३३ विशेषतः घट की अनंतधर्मात्मकता(५५) ८३५ | | पूर्वापर विरोध (५८) ९२५ ___- संबंधतः घट की अनंत धर्मात्मकता ८३६ | ४५३ सांख्यमत में स्ववचन-विरोध (५८) ९३० ४३४ आत्मा में और मुक्तात्मा में |४५४मीमांसक मत में स्ववचन विरोध (५८) ९३१ अनंतधर्मात्माकता (५५) ८३८ | ४५५ मूलग्रंथ में नहीं कही हुई कुछ बाते ४३५ धर्मास्तिकायादि में अनेकधर्मता ___ तथा जैनदर्शन की समाप्ति (५८) ९३५ का निरुपण (५५) ८४० वैशेषिक दर्शन : अधिकार-५ (५९) ९३८ ४३६ वस्तु में नास्तित्वपर्याय की सिद्धि (५५) ८४२/४५६वैशेषिक मत का प्रारंभ ४५७ वैशेषिक मत को मान्य छ: ४३७ सर्व वस्तुओ की प्रतिनियतस्वभावता (५५) ८४४ (६०) ४३८ प्रत्यक्ष और परोक्ष का लक्षण द्रव्यादि का निरुपण ९३९ (५६) ८४५ । ४३९ ज्ञानाद्वैतवादि की मान्यता का खंडन (५६) ८४७ |४५८ द्रव्य के पृथ्वी आदि नवभेद (६१) ४५९ पञ्चीस गुणो का निरुपण (६२-६३) ४४० परोक्ष का लक्षण (५६) ८४९ ४६० कर्मपदार्थ का निरुपण (६४) ९५५ ४४१ वस्तु की अनंतधर्मात्मकता की दृढता (५७) ८५० ४६१ पर-अपरसामान्य की व्याख्या (६५) ९५६ ४४२वस्तु की त्रयात्मकता की सिद्धि (५७) ८५२ |४६२ विशेषपदार्थ का निरुपण (६५) ९५९ ४४३वस्तु की अनेकांतता में विरोध, संशय, ४६३ समवाय का स्वरुप (६६) ९६२ अनवस्था आदि दोषो का उद्भावन (५७) ८६३ ४६४वैशेषिक मत में प्रमाण की संख्या (६७) ९६४ ४४४विरोधादि दोषो का परिहार (५७) ८६५ ४६५ प्रत्यक्ष के दो प्रकार , ९६५ ४४५बौद्धमत के द्वारा स्वीकृत अनेकांत ४६६ अनुमान का लक्षण का उद्भावन (५७) ८७७ |४६७ मूलग्रंथ में नहीं कही हुई कुछ बातें , ९६८ ४४६नैयायिको तथा वैशेषिको के द्वारा मीमांसक दर्शन : अधिकार - ६ स्वीकृत अनेकांत का प्रकाशन (५७) ८८६ | |४६८ मीमांसक दर्शन के वेश, आचार, लिंग(६७) ९७१ ९६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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