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एकांगी अनित्यत्ववाद का खंडन
अहिंसा के अभाव की अवस्था में सत्य आदि की बात भी वास्तविक अर्थ में युक्तिसंगत नहीं; क्योंकि मनीषियों ने इन सत्य आदि का प्रतिपादन अहिंसा के ही संरक्षण की दृष्टि से किया है ।
(टिप्पणी) जैसा कि पहले कहा जा चुका है आचार्य हरिभद्र की समझ है कि अहिंसा, सत्य आदि पाँच चरित्र-सद्गुणों में अहिंसा एक मूलसद्गुण है तथा सत्य आदि उसके चार सहायक-सद्गुण । प्रस्तुत कारिका में आचार्य हरिभद्र कह रहे हैं कि यह समझ उन्होंने 'मुनि' से प्राप्त की हैजहाँ 'मुनि' से आशय मनीषी-वर्ग से होना चाहिए ।
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