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अष्टक-१५
कि एक क्षण-विशेष का तत्कालपूर्ववर्ती क्षण इस क्षण-विशेष का उपादान कारण होता है ।
(टिप्पणी) यदि पिछली टिप्पणी के दृष्टान्त को ध्यान में रखा जाए तो क्षणिकवादी कह रहा है कि शिकारी मनुष्य-जीवनप्रवाह का कारण नहीं बल्कि इस मनुष्य-जीवनप्रवाह के प्रथम क्षण का कारण है। आचार्य हरिभद्र की आपत्ति है कि मनुष्य-जीवनप्रवाह के प्रथम क्षण का कारण तो हरिण-जीवनप्रवाह का अंतिम क्षण भी है, लेकिन हरिण-जीवनप्रवाह के अन्तिम क्षण को तो किसी अर्थ में भी किसी का भी हिंसक नहीं कहा जा सकता । पारिभाषिक शब्दावली में, हरिण-जीवनप्रवाह का अन्तिम क्षण मनुष्य-जीवनप्रवाह के प्रथम क्षण का 'उपादान-कारण' है जबकि शिकारी उसका 'निमित्त कारण' है।
तस्यापि हिंसकत्वेन न कश्चित् स्यादहिंसकः ।
जनकत्वाविशेषेण नैवं तद्विरतिः क्वचित् ॥६॥
यदि कहा जाए कि एक क्षण-विशेष का उपादान-कारण भूत क्षण भी हिंसक होता ही है तब तो संसार में अहिंसक कोई रह ही नहीं जाएगा, और वह इसलिए कि अपने तत्काल उत्तरवर्ती क्षण के उपादानकारण तो सभी क्षण हुआ करते हैं ।
(टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र का आशय है कि क्योंकि प्रत्येक क्षण अपने तत्काल उत्तरवर्ती क्षण का उपादान कारण होता है इसलिए किसी क्षण का उपादान-कारण होने के नाते ही एक क्षण को हिंसक मान लेने का अर्थ होगा सभी क्षणों को हिंसक मानना-और यह एक बेतुकी बात है ।
उपन्यासश्च शास्त्रेऽस्याः कृतो यत्नेन चिन्त्यताम् ।
विषयोऽस्य यमासाद्य हन्तैष सफलो भवेत् ॥७॥ ___ लेकिन शास्त्र में अहिंसा का प्रतिपादन प्रयत्नपूर्वक किया पाया जाता है और प्रस्तुतवादी को सोचना चाहिए कि इस प्रतिपादन का विषय क्या हैजिस विषय के आधार पर यह प्रतिपादन सार्थक सिद्ध हो सके । ।
(टिप्पणी) यहाँ 'शास्त्र' से आचार्य हरिभद्र का आशय उन बौद्ध धर्मग्रंथों से है जिनमें अहिंसा का प्रतिपादन पाया जाता है ।
अभावेऽस्या न युज्यन्ते सत्यादीन्यपि तत्त्वतः । अस्याः संरक्षणार्थं तु यदेतानि मुनिर्जगौ ॥८॥
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