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एकांगी अनित्यत्ववाद का खंडन
ततश्चास्याः सदा सत्ता कदाचिन्नैव वा भवेत् । कादाचित्कं हि भवनं कारणोपनिबंधनम् ॥३॥
और उस दशा में यह हिंसा या तो सदा उपस्थित रहनी चाहिए या कभी उपस्थित नहीं; यह इसलिए कि एक वस्तु का एक समयविशेष पर उत्पन्न होना किसी कारण पर निर्भर करता है ।
(टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र का आशय है कि 'इस वस्तु का कोई कारण नहीं' यह बात एक ऐसी वस्तु के संबंध में ही कही जा सकती है जो या तो शाश्वत हो या अ- वास्तविक; ऐसी दशा में 'हिंसा का कोई कारण नहीं' यह कहने का अर्थ हुआ कि हिंसा या तो एक शाश्वत वस्तु है या एक अवास्तविक वस्तु |
न च संतानभेदस्य जनको हिंसको भवेत् । सांवृतत्वान्न जन्यत्वं यस्मादस्योपपद्यते ॥४॥
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प्रस्तुतवादी यह भी नहीं कह सकता कि एक उपस्थित क्षण - प्रवाह से भिन्न प्रवाह के क्षण - प्रवाह को जन्म देने वाला व्यक्ति हिंसक कहलाता है; यह इसलिए कि प्रस्तुतवादी के मतानुसार क्षणों का यह 'प्रवाह' एक काल्पनिक वस्तु है जबकि एक काल्पनिक वस्तु के जन्म का प्रश्न नहीं उठ ।
(टिप्पणी) क्षणिकवादी का कहना है कि (उदाहरण के लिए) जब एक शिकारी एक हरिण को मारता है और यह हरिण मरकर मनुष्य - जन्म प्राप्त करता है तब यह शिकारी इस हरिण का हिंसक इसलिए है कि उसने हरिणजीवन प्रवाह के स्थान पर मनुष्य जीवनप्रवाह को जन्म दिया । आचार्य हरिभद्र की आपत्ति है कि 'जीवन - प्रवाह' कोई क्षणिक वस्तु नहीं और एक क्षणिकवादी की दृष्टि में प्रत्येक वह वस्तु जो क्षणिक नहीं वास्तविक नहीं; लेकिन एक अवास्तविक वस्तु को जन्म देने की बात बेतुकी है ।
अष्टक-४ Jain Education International
न च क्षणविशेषस्य तेनैव व्यभिचारतः । तथा च सोऽप्युपादानभावेन जनको मतः ॥५॥
प्रस्तुतवादी यह भी नहीं कह सकता कि एक क्षण विशेष को जन्म देने वाला व्यक्ति हिंसक कहलाता है, यह इसलिए कि इस क्षणविशेष के तत्कालपूर्ववर्त्ती क्षण पर भी यह वर्णन लागू होता है । यद्यपि यह पूर्ववर्ती क्षण किसी प्रकार का हिंसक नहीं; आखिरकार, प्रस्तुतवादी की यह मान्यता है ही
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