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एकांगी अनित्यत्ववाद का खंडन
क्षणिकज्ञानसंतानपक्षेऽप्यात्मन्यसंशयम् ।
हिंसादयो न तत्त्वेन स्वसिद्धान्तविरोधतः ॥१॥
यदि आत्मा को एक-क्षणस्थायी ज्ञानों का प्रवाह रूप माना जाए तो भी हिंसा आदि निःसंदिग्ध रूप से तथा वास्तविक अर्थ में असंभव ही बने रहेंगे और वह इसलिए कि यदि ऐसा न हो (अर्थात् यदि प्रस्तुतवादी हिंसा आदि को वास्तविक अर्थ में संभव मान ले) तो प्रस्तुतवादी अपने सिद्धान्त के विरुद्ध जा रहा होगा ।
(टिप्पणी) यह एक बौद्धमान्यता है कि आत्मा अर्थात् चेतन-तत्त्व (वस्तुतः बौद्ध-परंपरा चेतन-तत्त्व के लिए 'आत्मा' यह नाम देना अत्यन्त अनुचित मानती है) एक क्षणस्थायी ज्ञानों का प्रवाह मात्र है ।।
नाशहेतोरयोगेन क्षणिकत्वस्य संस्थितिः ।
नाशस्य चान्यतोऽभावे भवेद्धिसाऽप्यहेतुका ॥२॥
प्रस्तुतवादी एक वस्तु को क्षणिक यह कहकर सिद्ध करता है कि इस वस्तु के नाश का कोई कारणसंभव नहीं; लेकिन यदि एक वस्तु का नाश एक अन्य वस्तु के द्वारा संभव नहीं तो हिंसा का भी कोई कारण संभव नहीं ।
(टिप्पणी) क्षणिकवादी बौद्धों का कहना है कि उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाना एक वस्तु का स्वभाव है । फिर इन बौद्धों का तर्क है कि जो अवस्था जिस वस्तु में स्वभावतः रहती है उसके उस वस्तु में रहने का कोई कारण संभव नहीं-अर्थात् एक वस्तु के उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाने का कोई कारण संभव नहीं । 'नाशनिर्हेतुकतावाद' का वास्तविक आशय इतना ही है । इस पर आचार्य हरिभद्र की आपत्ति है कि कोई वस्तु किसी वस्तु के नाश का कारण नहीं, यह कहने का अर्थ है कि कोई व्यक्ति किसी प्राणी की हिंसा का कारण नहीं।
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