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________________ अष्टक-१४ या तो असंभव सिद्ध होगा या एक मूढ़ता का काम सिद्ध होगा । (टिप्पणी) निम्नलिखित पाँच चरित्रसद्गुणों को सांख्य-योग परंपरा में 'नियम' इस नाम से जाना जाता है :- शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान। और जैसा कि पहले कहा जा चुका है इस परंपरा में 'यम' इस नाम से जाने जाते हैं अहिंसा, सत्य आदि पाँच चरित्र-सद्गुण । शरीरेणापि संबंधो नात एवास्य संभवः । तथा सर्वगतत्वाच्च संसारश्चाप्यकल्पितः ॥५॥ और इसलिए (अर्थात् निष्क्रिय होने के कारण ही) आत्मा का शरीर से संबंध होना भी युक्तिसंगत नहीं; दूसरे, (प्रस्तुतवादी के मतानुसार) आत्मा के सर्वव्यापी होने के कारण उसका संसारचक्र में भ्रमण भी एक अ-काल्पनिक (अर्थात् वास्तविक) अर्थ में संभव नहीं । (टिप्पणी) एक निष्क्रिय आत्मा का शरीर से संबंध इसलिए संभव नहीं कि संबंध एक क्रिया है; और संसारचक्र में भ्रमण तो स्पष्ट ही एक क्रिया है। ततश्चोर्ध्वगतिर्धर्मादधोगतिरधर्मतः । ज्ञानान्मोक्षश्च वचनं सर्वमेवौपचारिकम् ॥६॥ और उस दशा में यह सब कहना एक औपचारिक बात सिद्ध होगी कि धर्माचरण के फलस्वरूप एक आत्मा उन्नत गति प्राप्त करती है, अधर्माचरण के फलस्वरूप एक आत्मा पतित गति प्राप्त करती है, ज्ञान से एक आत्मा को मोक्ष मिलती है। भोगाधिष्ठानविषयेऽप्यस्मिन् दोषोऽयमेव तु । तद्भेदादेव भोगोऽपि निष्क्रियस्य कुतो भवेत् ॥७॥ यह मानने पर भी कि संसार-चक्र में भ्रमण आत्मा के भोग का आश्रयभूत शरीर करता है उक्त दोष बना ही रहेगा । दूसरे, भाग भी तो एक प्रकार की क्रिया ही है और एक निष्क्रिय आत्मा में वह संभव कैसे होगा ? (टिप्पणी) यह एक सांख्य-योग मान्यता है कि आत्मा एक निष्क्रिय तथा सर्वव्यापी पदार्थ है; इसलिए यहाँ माना जाता है कि संसार-चक्र में भ्रमण एक आत्मा नहीं करती बल्कि इस आत्मा का 'सूक्ष्म शरीर' करता है । 'सूक्ष्म शरीर' के संबंध में इतना ही जान लेना आवश्यक है कि वह मरकर भस्मीभूत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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