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धर्मवाद
विषयो धर्मवादस्य तत्तत्तन्त्रव्यपेक्षया ।
प्रस्तुतार्थोपयोग्येव धर्मसाधनलक्षणः ॥१॥
धर्मवाद का विषय-जो ही प्रस्तुत प्रसंग में (अर्थात् मोक्ष के प्रसंग में) उपयोगी है—यह प्रश्न है कि उन उन चिन्तन-परंपराओं के मतानुसार धर्म के साधन कौन कौन से हैं ।
(टिप्पणी) टीकाकार के कथनानुसार यहाँ 'धर्म' इस शब्द का अर्थ होगा "पूर्वार्जितकर्मों का नाश होना (परिभाषिक नाम – “निर्जरा') तथा नए 'कर्मों' का अर्जन रुकना (पारिभाषिक नाम – 'संवर')" । अतः यहाँ 'धर्मसाधन' इस शब्द का अर्थ होगा वे पवित्र क्रिया-कलाप जिनके फलस्वरूप एक प्राणी के पूर्वार्जित 'कर्मों' का नाश होता है तथा उसके द्वारा नए 'कर्मों' का अंर्जन रुकता है ।
पञ्चैतानि पवित्राणि सर्वेषां धर्मचारिणाम् ।
अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागो मैथुनवर्जनम् ॥२॥ सभी धार्मिक व्यक्तियों की दृष्टि में धर्म के पवित्र साधन ये पाँच हैं : अहिंसा, सत्य, अ-चौर्य, त्याग (= अनासक्ति, अ-परिग्रह), मैथुन-विरति (=ब्रह्मचर्य) ।
___(टिप्पणी) इन्हीं पाँच चरित्र - सद्गुणों - को सांख्य-योग परंपरा की पारिभाषिक शब्दावली में 'यम' तथा जैन-परंपरा की पारिभाषिक शब्दावली में 'महाव्रत' कहा गया है।
क्वं खल्वेतानि युज्यन्ते मुख्यवृत्त्या क्व वा नहि । तन्त्रे तत्तन्त्रनीत्यैव विचार्यं तत्त्वतो ह्यदः ॥३॥ धर्मार्थिभिः प्रमाणादेर्लक्षणं न तु युक्तिमत् । प्रयोजनाद्यभावेन तथा चाह महामतिः ॥४॥
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