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________________ ३१ समझ यह रही है कि शुभ मनोभावना में तदनुकूल आचार का भी समावेश है, लेकिन प्रस्तुत प्रसंग में— अर्थात् प्रस्तुत दूसरे प्रकार के ज्ञान के वर्णन के प्रसंग में शुभ मनोभावना में तदनुकूल आचार का समावेश नहीं किया जाना चाहिए । यह इसलिए कि इस प्रकार के ज्ञान की विशेषता यही है कि यह होंने पर एक व्यक्ति भले काम को भला तथा बुरे काम को बुरा तो मानने लगता है। लेकिन उसके लिए यह संभव नहीं होता कि वह भले कामों को करे तथा बुरे कामों से बचे । इस स्पष्टीकरण की पृष्ठभूमि में आचार्य हरिभद्र की प्रस्तुत कारिका का अर्थ समझने में विशेष कठिनाई नहीं होनी चाहिए । प्रस्तुत प्रकार के ज्ञान से संपन्न व्यक्ति को जैन कर्म-शास्त्र की पारिभाषिक शब्दावली में 'अविरत सम्यग्दृष्टि' कहा गया है— अर्थात् सद्बुद्धि - संपन्न ऐसा व्यक्ति जो पाप - विरत होने में असमर्थ है । इसके विपरीत पहले प्रकार के ज्ञान से संपन्न व्यक्ति को 'मिथ्यादृष्टि' (अर्थात् दुर्बुद्धि - संपन्न व्यक्ति ) कहा जाएगा - तथा आगामी तीसरे प्रकार के ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति को 'विरत सम्यग्दृष्टि' (अंशतः पाप-विरत व्यक्ति को 'देशविरत सम्यग्दृष्टि' तथा पूर्णतः पाप-विरत व्यक्ति को 'सर्वविरत सम्यग्दृष्टि') । ज्ञान तथाविधप्रवृत्त्यादि व्यंग्यं सदनुबंधि च । ज्ञानावरणह्रासोत्थं प्रायो वैराग्यकारणम् ॥५॥ इस प्रकार के ज्ञान की पहचान है तदनुरूप क्रिया आदि ( अर्थात् तदनुरूप क्रिया, क्रिया - विरति आदि), दूसरे, ऐसा ज्ञान ( तत्काल नहीं लेकिन ) आगे चलकर शुभकारी सिद्ध होता है, वह ज्ञान के आवरणों के (अर्थात् ज्ञान के आवरण भूत 'कर्मों' के) ह्रास के फलस्वरूप उत्पन्न होता है तथा वह वैराग्य का कारण प्रायः सिद्ध होता है । (टिप्पणी) यहाँ ' तदनुरूपक्रिया' का अर्थ है 'भले काम को भला तथा बुरे काम को बुरा समझते हुए भी भले काम न कर पाना तथा बुरे काम कर बैठना' । यह पहले ही दिखाया जा चुका है कि प्रस्तुत प्रकार का ज्ञान वस्तुतः ज्ञान रूप है— न कि पहले प्रकार के ज्ञान की भाँति वस्तुतः अज्ञान रूप; इसीलिए यहाँ कहा जा रहा है कि इस दूसरे प्रकार के ज्ञान के होते समय ज्ञान के—अर्थात् मति - ज्ञान आदि के आवरणभूत 'कर्म' हटे होते हैं । Jain Education International स्वस्थवृत्तेः प्रशान्तस्य तद्धेयत्वादिनिश्चयम् । तत्त्वसंवेदनं सम्यग्यथाशक्तिफलप्रदम् ॥६॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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