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अष्टक-३
दूसरी ओर, शुभ मनोभावनाओं से उत्पन्न, शास्त्र-वचन रूपी गण से (अथवा शास्त्र-वचन रूपी धागे से)* संयुक्त, परिपूर्ण (अर्थात् अपवाद-हीन) होने के कारण बिना मुरझाए हुए और इसीलिए सुगंधित फूलों की सहायता से
-और यहाँ श्रेष्ठ फूल कहा गया है अहिंसा, सत्य, अ-चौर्य, ब्रह्मचर्य, अनासक्ति, गुरुभक्ति, तप, ज्ञान, (इन आठ चरित्र-गुणों) को अत्यंत मानपूर्वक की जाने वाली देवाधिदेव की अष्टपुष्पी पूजा जिस पूजा का स्वरूप है उक्त अहिंसा आदि का पालन करना-शुद्ध कही गई है ।
(टिप्पणी) देखा जा सकता है कि प्रस्तुत कारिकाओं में आचार्य हरिभद्र केवल यह कह रहे हैं कि एक व्यक्ति को अहिंसा आदि आठ चारित्रिक सद्गुणों का पालन शुभ मनोभावनापूर्वक, शास्त्राध्ययनपूर्वक तथा निरपवाद रूप से करना चाहिए, लेकिन इन आठ सद्गुणों की तुलना आठ फूलों से करके –तथा फूलों को दिए जाने वाले विशेषण इन सद्गुणों को देकर-वे पाठक के मन पर यह छाप छोड़ना चाहते हैं जैसे मानों यहाँ किसी देवता को समर्पित की गई किसी प्रकार की अष्टपुष्पी पूजा का वर्णन किया जा रहा है ।
प्रशस्तो ह्यनया भावस्ततः कर्मक्षयो ध्रुवः। कर्मक्षयाच्च निर्वाणमत एषा सतां मता ॥८॥
इस प्रकार की शुद्ध अष्टपुष्पी पूजा करने के फलस्वरूप एक व्यक्ति के मन में प्रशंसा-योग्य भावनाओं का जन्म होता है, इन भावनाओं के जन्म के फलस्वरूप निश्चय ही उसके 'कर्मों' का नाश होता है, तथा 'कर्मों' के नाश के फलस्वरूप उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि बुद्धिमानों ने इस शुद्ध अष्टपुष्पी पूजा का ही अनुमोदन किया है ।
(टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र के इस वक्तव्य से (तथा उनके इस प्रकार के वक्तव्यों से) सूचित होता है कि उनके मतानुसार मोक्ष का वास्तविक तथा एकमात्र साधन है चारित्रिक सद्गुणों का उत्तरोत्तर विकास ।
★ यह अर्थ करने पर मानना होगा कि यहाँ प्रस्तुत चरित्र-सद्गुणों की तुलना धागे में पिरोयें फूलों से-अर्थात् फूलों की माला से की जा रही है ।
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