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________________ XIV किया जाता है । (३) पूजा इस अष्टक में आचार्य हरिभद्र ने कहा है कि साधारण पुष्पों की सहायता से एक देव-मूर्ति की की जाने वाली पूजा की अपनी सीमित उपयोगिता होते हए भी वास्तविक पूजा-अर्थात् आध्यात्मिक दृष्टि से उपादेय पूजा-वह है जिसमें अहिंसा, सत्य, अ-चौर्य, ब्रह्मचर्य, अनासक्ति, गुरुभक्ति, तप तथा ज्ञान इन आठ चरित्र-सद्गुणों का संपादन किया जाता है । (४) अग्नि-कर्म (हवन) इस अष्टक में आचार्य हरिभद्र ने कहा है कि साधारण ईंधन वाली अग्नि में साधारण आहुति देकर किए जाने वाले हवन की अपनी सीमित उपयोगिता होते हुए भी वास्तविक हवन-अर्थात् आध्यात्मिक दृष्टि से उपादेय हवन-वह है जिसमें 'कर्म' रूपी ईंधन को जलाने वाले धर्म-ध्यान रूपी अग्नि में शुद्ध मनोभावना रूपी आहुति दी जाती है । (५) भिक्षा ___ इस अष्टक में आचार्य हरिभद्र ने भिक्षा को तीन प्रकार की बतलाया है—पहली वह जो एक सच्चा साधु माँगता है, दूसरी वह जो एक झूठा साधु माँगता है, तीसरी वह जो अन्यथा जीविकोपार्जन करने में असमर्थ एक व्यक्ति माँगता है। (६) सर्वसम्पत्करी भिक्षा इस अष्टक में आचार्य हरिभद्र ने उस भिक्षा के संबंध में उठाई गई एक आपत्ति का निवारण किया है जो उनके मतानुसार सर्वश्रेष्ठ प्रकार की है तथा जिसे उन्होंने 'सर्वसम्पत्करी भिक्षा' यह नाम दिया है । आचार्य हरिभद्र का कहना है कि आदर्श भिक्षा एक ऐसी वस्तु की भिक्षा है जिसे तैयार करते समय भिक्षा-दाता ने यह संकल्प न किया हो कि वह भिक्षार्थियों को दी जाने के लिए है, लेकिन विरोधी की आपत्ति है कि ऐसी कोई वस्तु भिक्षा में दी ही नहीं जा सकती । आचार्य हरिभद्र का समाधान है कि यदि एक भिक्षा-दाता अपने उपयोग के लिए तैयार की गई किसी वस्तु के एक भाग के संबंध में यह संकल्प करे कि वह भिक्षार्थियों को दी जाने के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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