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मोक्ष
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संवेद्यं योगिनामेतदन्येषां श्रुतिगोचरः ।
उपमाऽभावतो व्यक्तमभिधातुं न शक्यते ॥९॥
यह सुख योगियों के अनुभव का विषय है जबकि दूसरे व्यक्ति उसके संबंध में सुना भर करते हैं। और क्योंकि इस सुख की कोई उपमा नहीं इसीलिए उसका स्पष्ट वर्णन संभव नहीं ।
(टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र का आशय यह है कि उसी सुख का स्पष्ट वर्णन किया जाना संभव है जिसके सदृश किसी सुख की अनुभूति हमें अपने सामान्य सांसारिक जीवन में होती हो, लेकिन मोक्ष सुख के सदृश किसी सुख का अनुभव हमे अपने सामान्य सांसारिक जीवन में होता नहीं ।
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