________________
१०६
4
'अन्न आदि भोंगों के सेवन का फल क्या है ?' उत्तर दिया जाएगा: 'भूख .आदि मिटाना' । तब हमारा पूछना है भूख आदि मिटाने का फल क्या है ? ' उत्तर दिया जाएगा : 'स्वास्थ्य लाभ ' । लेकिन इस पर हमारा कहना है कि मोक्ष प्राप्त कर चुकने वाले व्यक्तियों को स्वास्थ्यलाभ तो सदा रहता है ।
अस्वस्थस्यैव भैषज्यं स्वस्थस्य तु न दीयते । अवाप्तस्वास्थ्यकोटीनां भोगोऽन्नादेरपार्थकः ॥५॥
औषधि एक अस्वस्थ व्यक्ति को दी जाती है, एक स्वस्थ व्यक्ति को नहीं । सचमुच, जिन व्यक्तियों ने स्वास्थ्य की पराकाष्ठा प्राप्त कर ली है उनके लिए अन्न, पान आदि भोगों का सेवन बेकार है ।
अकिंचित्करकं ज्ञेयं मोहाभावाद् रताद्यपि । तेषां कण्डवाद्यभावेन हन्त कण्डूयनादिवत् ॥६॥
इसी प्रकार, क्योंकि मोक्ष प्राप्त कर चुकने वाले व्यक्तियों में मोह का अभाव होता है इसलिए उनके निकट काम आदि का सेवन भी एक बेकार की बात है— उसी प्रकार जैसे खुजली के अभाव में खुजलाना एक बेकार की बात है ।
अपरायत्तमौत्सुक्यरहितं निष्प्रतिक्रियम् ।
सुखं स्वाभाविकं तत्र नित्यं भयविवर्जितम् ॥७॥
अष्टक - ३२
मोक्षावस्था में प्राप्त होने वाला सुख किसी दूसरे के अधीन नहीं होता, आकांक्षाओं से शून्य होता है, दुःख की प्रतिक्रियारूप नहीं होता, स्वाभाविक होता है, शाश्वत होता है, भय से शून्य होता है ।
(टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र का आशय यह है कि संसारावस्था में प्राप्त होने वाले सुख के विशेषण इन विशेषणों के ठीक उलटे होते हैं ।
परमानन्दरूपं तद् गीयतेऽन्यैर्विचक्षणैः ।
इत्थं सकलकल्याणरूपत्वात् साम्प्रतं ह्यदः ॥८ ॥
कुछ दूसरे विद्वानों ने इस सुख को परम आनन्द रूप कहा है । इस प्रकार सकल कल्याण रूप होने के कारण यही ( अर्थात् मोक्ष - सुख ही ) उचित है ( अर्थात् एक उचित सुख है ) ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org