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________________ ३० केवल (सर्वविषयक) ज्ञान सामायिक विशुद्धात्मा सर्वथा घातिकर्मणः । क्षयात् केवलमाप्नोति लोकालोकप्रकाशकम् ॥१॥ जिस व्यक्ति की आत्मा सामायिक द्वारा विशुद्ध की जा चुकी है वह अपने घाती 'कर्मों' के अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय तथा अन्तराय इन चार प्रकार के 'कर्मों' के) सर्वथा नाश के फलस्वरूप उस केवल (अर्थात् सर्व विषयक) ज्ञान की प्राप्ति करता है जो लोक तथा अ-लोक दोनों का स्वरूप प्रकट करने वाला है । (टिप्पणी) जैन कर्म - शास्त्र द्वारा स्वीकृत 'कर्म' के आठ प्रकारों में से चार को घाती तथा चार को 'अघाती' कहा गया है । एक व्यक्ति के चार घाती 'कर्मों' का नाश इस बात का सूचक है कि वह अपने इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर लेगा ( जबकि उसके चार अघाती 'कर्मों' का नाश सूचक है उसके शरीर-त्याग का — अर्थात् उसकी मोक्ष - प्राप्ति का ) । यह भी एक जैन कर्म - शास्त्रीय मान्यता है कि अपने सब घाती 'कर्मों' का नाश होते ही एक व्यक्ति सर्वज्ञ हो जाता है । विश्व को 'लोक' तथा 'अ-लोक' इन दो भागों में बाँटना — जिन्हें क्रमशः विश्व का 'भरा भाग' तथा 'खाली भाग' कहा जा सकता हैजैन परंपरा की एक अपनी विशेषता है । यह परंपरा विश्व को निम्नलिखित ६ भागों में बाँटती है... जीव (= आत्मा), पुद्गल (= भूत), धर्म (= गति को संभव बनाने वाला तत्त्व), अधर्म (= स्थिति को संभव बनाने वाला तत्त्व), काल, आकाश । 'लोक' में उक्त छह द्रव्य पाए जाते हैं जबकि 'अ-लोक' में पाया जाता है आकाश का एक भाग मात्र (जिसका नाम है " अलोकाकाश) । सर्वविषयक ज्ञान को 'केवल ज्ञान' (अथवा 'केवल' कहना भी जैन परंपरा की ही विशेषता है । ज्ञाने तपसि चारित्रे सत्येवास्योपजायते । विशुद्धिस्तदतस्तस्य तथा प्राप्तिरिष्यते ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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